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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/७०

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६७ बौद्ध-संघ के भेद के पुत्र यश ने पश्चिमी देश के बौद्धों को, अवन्ती के बौद्धों को और दक्षिणी प्रदेश के समरत बौद्ध-भिक्षुओं को यह कहकर दूत भेजा और उनको यह सन्देश दिया-जबतक जो धर्म नहीं है, उसका प्रचार न हो जाय और जो धर्म है वह पृथक न कर दिया जाय, जो विनय में नहीं है उसका प्रचार न हो जाय और जो विनय में है उसे अलग न कर दिया जाय-इससे पहले ही हम लोगों को इस सम्बन्ध में सावधान हो जाना चाहिए। यश को पश्चिमी प्रान्तों से बहुत सहायता मिली, लेकिन वैशाली के विरोधी भिक्षुओं ने पूर्व से सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न किया। वास्तव में बात यह थी कि यह भेद वैशाली के पूर्वी बौद्धों में और गंगा के ऊपरी मार्ग के प्रान्तों के पश्चिमी बौद्ध तथा मालवा और दक्षिण के बौद्धों में था। पूर्वीमत के समर्थक वैशाली के विज्जयन थे जो वास्तव में तूरान की पूची जाति से सम्बन्ध रखते थे। यह कहा जा सकता है यह झगड़ा तूरानी बौद्धों में और हिन्दु बौद्धों में था। इस सभा में जो निर्णय हुआ इसका फल यह हुआ कि उत्तर भारत के समस्त बौद्ध ने इन्हीं पूर्वी बौद्धों से सम्मिलित होकर अपना एक पृथक् सम्प्रदाय स्थापित कर दिया, और इसमें चीन के लोग, नापान के लोग, और तिब्बत के लोग भी सम्मिलित हो गए। इस सभा में ४ मिनु पश्चिम के और ४ भिक्षु पूर्व के पंच चुने गये और १० विवादास्पद प्रश्नों को उपस्थित किया. गया । ,