अध्याय १ ब्राह्मण ५ १०७ जब उसका विचार ऐसा होगा कि मन ही उसका आत्मा है, और वाणी ही उसकी स्त्री है, प्राण ही उसका पुत्र है, नेत्र ही उसका मनुष्यसम्बन्धी धन है, क्योंकि नेत्र करके ही मनुण्यसम्बन्धी गौ आदि धन उसको प्राप्त होता है, और उसका देवतासम्बन्धी धन यानी विज्ञान श्रोत्र है, क्योंकि श्रोत्र करके ही उस ज्ञान को सुनता है, उसका शरीर ही कर्म है, क्योंकि शरीर करके ही यह कर्म को करता है, इसलिये हे प्रियदर्शन ! वही यह यज्ञ पाँच पदार्थो से सिद्ध हुआ है, वही यह पाँच पदार्थ से सिद्ध हुआ यज्ञ पशु है, वही यह पाँच तत्त्व से बना हुआ पुरुष है, वही यह जगत् पांच तत्वोंवाला है, वह जो इस प्रकार जानता है वह जो कुछ जगत् बिषे है सबको प्राप्त होता है॥१७॥ इति चतुर्थ ब्राह्मणम् ॥ ४ ॥ अथ पञ्चमं ब्राह्मणम् । यत्सप्लान्नानि मेधया तपसाऽजनयत्पिता एकमस्य साधारणं द्वे देवानभाजयत् त्रीण्यात्मनेऽकुरुत पशुभ्य एक पायच्छत् तस्मिन्सर्वं प्रतिष्ठितं यच्च प्राणिति यच्च न कस्मात्तानि न तीयन्तेऽद्यमानानि सर्वदा यो वैता- मक्षितिं वेद सोऽन्नमत्ति प्रतीकेन स देवानपि गच्छति स ऊर्जमुपजीवतीति श्लोकाः ॥ . ..
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