पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/१४३

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• अध्याय १ ब्राह्मण ५ १२७ . . - वै, 3 रूप । असौम्य पदच्छेदः। अथ, एतस्य, मनसः, द्यौः, शरीरम् , ज्योतीरूपम् , असौ, आदित्यः, तत् , यावत्, एव, मनः, तावती, द्यौः, तावान् , असौ, आदित्यः, तौ, मिथुनम् , समैताम् , ततः, प्राणः, अजायत, सः, इन्द्रः, सः, एषः, असपत्नः, द्वितीयः, सपनः, न, अस्य, सपनः, भवति, यः, एवम्, वेद ।। अन्वय-पदार्थ । अथम्योर । एतस्य-इस । मनसा मन का। शरीरम् - शरीर । द्यौः स्वर्ग है। + तस्य-उसका । ज्योतीरूपम्-प्रकाश- यह । आदित्यः सूर्य है। तत्-इस कारण । यावत्-जितना प्रमाणवाला। मनः मन है। तावती एव- उतना ही प्रमाणवाला । द्यौः स्वर्ग है। तावान्-उतना ही प्रमाणवाला । असौ यह । श्रादित्यः-सूर्य है । + यदा-जत्र ! तो ये दोनों यानी मन और वाणी । मिथुनम् मिथुनभाव को । समैताम् प्राप्त हुये । तता-तब उनसे । प्राण-प्राण । अजा- यत-हुमा । साम्यह प्राण। इन्द्रःबड़ा शनिमान् है। सः वही । एपा यह प्राण । असपत्तः स्पर्धारहित । वैतिश्चय करके है। सपत्न: स्पर्धा करनेवाला। द्वितीयः दूसरा।+भचति- होता है । याजों । एवम् ऐसा । वेद-जानता है। अस्य= इसका । सपत्नः मुकाविला करनेवाला दूसरा । न-नहीं। भवति होता है। भावार्थ। हे सौम्य ! उस मन का शरीर स्वर्ग है, उसका प्रकाश- रूप यह सूर्य है, इस कारण जितना प्रमाणवाला मन है, उतना ही प्रमाणवाला आकाश है, उतना ही प्रमाणवाला