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पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/२२७

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अध्याय २ ब्राह्मण २१२ भी जो प्रेरक हो यानी सत्ता देनेवाला हो, वही त्रिकालाबाध सच्चिदानन्द स्वरूप है, यही उसका नाम है ॥ ६॥ इति तृतीयं ब्राह्मणम् ॥ ३ ॥ . अथ चतुर्थ ब्राह्मणम्। मन्त्रः १ मैत्रेयीति होवाच याज्ञवल्क्य उचास्यन्वा अरेऽहम- स्मात्स्थानादस्मि हन्त तेऽनया. कात्यायन्याऽन्तं कर- वाणीति ॥ पदच्छेदः। मैत्रेयि, इति, ह, उवाच, याज्ञवल्क्यः, उद्यासन् , वै, अरे, अहम्, अस्मात् , स्थानात् , अस्मि, हन्त, ते, अनया, कात्यायन्या, अन्तम् , करवाणि, इति ।। अन्वय-पदार्थ । मैत्रेयि हे प्रिय मैत्रेयि !। इति ऐसा सम्बोधन करके । याज्ञ- वल्क्या-याज्ञवल्क्य । उवाच-बोले कि । अरे हे प्रियमैत्रेयि ! अहम्-मैं । अस्मात्-इस । स्थानात्-गृहस्थ आश्रम से । वै निश्चय करके । उद्यास्यन् अस्मि-ऊपर को जाननेवाला हूँ यानी वानप्रस्थाश्रम को धारण करनेवाला हूँ । यदि अगर । हन्त- अनुमति हो तो । अनया-इस निकट बैठी हुई । कात्यायन्या कात्यायनी के साथ । ते-तुम्हारा । अन्तम्-सम्बन्ध को पृथक करवाणि इति कर दूं यानी तुम दोनों के मध्य धन को बराबर वाँट दूं ताकि एक दूसरे से कोई सम्बन्ध न रह जाय। "