सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

'अध्याय १ ब्राह्मण २ सवको अवश्य खा जाता है, और इसीलिये इस मृत्यु का नाम अदिति है, क्योंकि अत्ति धातु से निकला है, जिसका अर्थ खाना है, इस प्रकार जो मृत्यु नामक अदिति के अदि- तित्व को जानता है यानी यह समझता है कि नाम रूप- वाली चीजें भोग हैं और नाशवान् हैं और भोगनेवाला चेतन आत्मा है वह सब जगत् का अत्ता यानी भक्षणकर्ता होता है, क्योंकि हर एक व्यष्टिरूप पृथक्-पृथक् आत्मा उसका समष्टिरूप एक आत्मा होता है, इसलिये जिस जिसको हर एक जीव खाते हैं वह सब इस मृत्युरूप प्रजापति का भोग होता है ॥ ५ ॥ मन्त्रः६ सोऽकामयत भूयसा यज्ञेन भूयो यजेयेति सोऽश्रा- म्यत्स तपोऽतप्यत तस्य श्रान्तस्य तप्तस्य यशोवीर्यमुद- क्रामत् । प्राणा वै यशो वीर्यम् तत्माणेपूत्कान्तेपु शरीरं श्वयितुमध्रियत तस्य शरीर एव मन आसीत् ॥ पदच्छेदः। सः, यकामयत, भूयसा, यज्ञेन, भूयः, यजेय, इति, सः, अश्राम्यत्, सः, तपः,. अतप्यत, तस्य, श्रान्तस्य, तप्तस्य, यशः, वीर्यम्, उदक्रामत्, प्राणाः, वै, यशः, वीर्यम् , तत् , प्राणपु, उत्क्रान्तपु, शरीरम् , श्वयितुम् , अनियत, , तस्य, शरीरे, एव, मनः, आसीत् ॥ 'अन्वय-पदार्थ भूयसा-बड़े प्रयत्न । यज्ञेन-यज्ञ विधि करके । भूयः फिर N .