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पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४४२

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. 7 प्राणः, . . बृहदारण्यकोपनिषद् स० कथम् , अध्यर्द्धः, इति, यत् , अस्मिन् , इदम् , सर्वम् , अधि, आर्नोत् , तेन, अध्यर्द्धः, इति, कतमः, एकः, देवः, इति, इति, सः, ब्रह्म, त्यत् , इति, आचक्षत ॥ अन्वय-पदार्थ । तत्-तिस विषय में । आहुः विद्वान् कहते हैं कि । यत् जब । अयमन्यह वायु । एकाएक होता हुषा । एव-निश्चय करके । पचते-चहता है। अथ तो प्रश्न है कि । सामवह । अध्यर्द्ध अध्यर्द्व है । इत्र-ऐसा । कथम्-क्यों । आहुः कहते हैं । इति इस पर । + याज्ञवल्क्या याज्ञवल्क्य ने । आह-कहा कि । यत्-जिस कारण । अस्मिन्-इस वायु में ही । इदम्यह दृश्यमान । सर्वम्-सब जगत् । अध्या!त्-अधिक वृद्धि को प्राप्त होता है। तेन-तिस कारण | + सः वह । अध्यद्ध:- अध्याई । इति-नाम करके । कथ्यते-कहा जाता है । + पुनः फिर I + विदग्धा-विदग्ध ने । + आह-पूछा कि । + सः वह । एका-एक । देवः देव । कतमः कौन है। इति इस पर । याज्ञवल्क्यः याज्ञवल्य ने। श्राहकदा । सा-वह । प्राणप्राण करके विख्यात है। साम्सोई प्राण । त्यत्याह । ब्रह्मन्ब्रह्म है। इति-ऐसा । पाचक्षते-लोग कहते हैं। भावार्थ । तिस विषय में विदग्ध कहते हैं, हे याज्ञवल्क्य ! जब यह वायु एक होता हुआ वहता है तब उसको लोग अध्यर्द्ध क्यों कहते हैं, इसके उत्तर में याज्ञवल्क्य कहते हैं, हे विदग्ध ! जिस कारण इस वायु में ही यह सब दृश्यमान जगत् अधिक वृद्धि को प्राप्त होता है तिसी कारण उसको •unny