अध्याय ६ब्राह्मण ४ . रेतः ॥ अथ चतुर्थं ब्राह्मणम् । मन्त्रः १ एमां वै भूतानां पृथिवी रसः पृथिव्या आपोऽपामो- पधय ओषधीनां पुष्पाणि पुष्पाणां फलानि फलानां पुरुपः पुरुपस्य रेतः ॥ पदच्छेदः। एपाम्, वै, भूतानाम् , पृथिवी, रसः, पृथिव्याः, आपः, अपाम् , श्रोषधयः, ओषधीनाम्, पुष्पाणि, पुष्पाणाम् , फलानि, फलानाम् , पुरुषः, पुरुषस्य, अन्वय-पदार्थ। एपाम्-इन । भूतानाम्-पांच महाभूतों का । वैनिश्चय करके । रस: सार । पृथिवी-पृथिवी है । पृथिव्याः पृथिवी का । + रसम्सार । श्राप: जल हैं । अपाम्-अल का। + रसासार । ओपधयान्योषधियां हैं । ओषधीनाम् श्रोपधियों का। + रस: सार । पुष्पाणि-फूल हैं । पुष्पा- णाम् फूलों का । + रसा-सार । फलानि फल हैं । फलानाम्- फलों का । रसासार । पुरुष-पुरुष है । पुरुषस्य-पुरुष का ।+ रसासार । रेत:वीर्य है।। भावार्थ: हे सौम्य ! इस चतुर्थ ब्राह्मण में श्रीमन्थाख्यकम के उपदेश के पश्चात् उत्तम सुयोग्य संतान के चाहनेवाले मनुष्य के लिये रजोवीर्य की प्रशंसा की जाती है--हे सौम्य! पांच जो महाभूत हैं उनका सार पृथिवी है, पृथिवी का सार
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