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बेकन-विचाररत्नावली।


अनेक नाम नियत किए थे; परन्तु ईश्वरवाची 'द्यौः' शब्दतक उनकी पहुँच नहीं हुई थी। अब देखिए कि महा असभ्य जंगली लोगोंसे लेकर बड़े बड़े तत्त्ववेत्ताओंतक सभी निरीश्वर मत वालों के प्रतिपक्षी होरहे हैं। मनसा, वाचा, कर्म्मणा ईश्वरका अस्तित्व न स्वीकार करनेवाले नास्तिक बहुत कम हैं। एक आध डियागोरस[१], बायन[२], लूशियन[३], अथवा ऐसेही और दो चार; बस। तथापि निरीश्वर वादी लोगोंकी यथार्थतः जितनी संख्या है तदपेक्षा उसके अधिक होनका भास होता है। इसका यह कारण है कि वर्तमान धर्म्म अथवा भ्रमात्मक धर्म्मभीरूताके विरुद्ध जो कोई कुछ कहता है उसकी निरीश्वर वादियोंमें गणना होने लगती है। हमारे मत के अनुसार तो सबसे बड़े चढ़े निरीश्वर वादी वे हैं जो धार्म्मिक विषयोंमें दम्भ और कपट का व्यवहार करते हैं। ऐसे लोग, बाहर धर्म्मशीलताके हाव भाव दिखलातेहैं, परन्तु अन्तःकरणमें वे सद्धर्म्मका लेश भी नहीं रखते। पहँचानके लिए इनके मस्तक पर कोई चिह्न होना चाहिए।


  1. डियागोरस, ग्रीसमें, एक परम नास्तिक हो गया है। इसका किसी धर्म्म पर विश्वास न था। एक बार एक मनुष्यने न्यायालय में झूंठ बोला और झूंठ बोलकर भी वह दंड पानेसे बच गया। इस बातको देखकर, डियागोरसने सर्वसाधारणके सामने, ईश्वर में अपना अविश्वास प्रकट किया और उस दिनसे देवता तथा धर्म्म सम्बन्धी सारी बातों का यह उपहास करने लगा। इसका शिर काट लाने वाले को विशेष द्रव्यदेनेकी घोषणा प्रकाशित हुई थी। इसे सुनकर डियागोरस कारिंथ को भाग गयाथा। वहां जाकर इस संसारसेभी इसे शीघ्रही भागना पड़ा। यह ईसा के लगभग ४१६ वर्ष पहले विद्यमान था।
  2. वायन भी निरीश्वर वादी था। एथन्स में इसने तत्त्वज्ञान सीखा था। यह थियोडोरस का शिष्यथा। इसका विशेषवृत्त विदित नहीं है।
  3. ईजिप्टके एक रोमन गवर्नर के पास लूशियन नामक एक अधिकारी था। इसने अनेक ग्रन्थ लिखेहैं। न अपने देशके धर्म्म पर इसको विश्वास था और न और देशके धर्म्म पर। किश्चियन मत पर भी इसने बहुत कुछ आक्षेप किया है। सन् १८० ईसवी में ९० वर्ष का होकर यह मृत्युको प्राप्त हुआ।