पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२८)
बेकन-विचाररत्नावली।


लिये मनुष्यको पहिलेहीसे उसका मतीकार सोच रखना चाहिये। जो संशय स्वयमेव मनमें उत्पन्न होजाते हैं वे मधुमक्षिकाकी भनभनाहटके समान समझने चाहिये; उनसे कोई हानि नहीं पहुँचती। परन्तु जो संशय, दूसरे लोग, नानाप्रकारकी उलटी सीधी बातैं सुझाकर, मनुष्यके मनमें उत्पन्न करदेते हैं वे डंक के समान लगते हैं अर्थात उनसे अवश्यमेव अनिष्ट होता है।

जिसके विषय में संशय उत्पन्न हुआ है उससे अपने मनकी बात को स्पष्टतापूर्वक कहदेनाही संशय के नाश करने का सर्वोत्तम उपाय है। ऐसा करने से सत्य क्या है यह पहले की अपेक्षा अधिक समझ में आजाता है, और जिसके ऊपर संशय उत्पन्न हुवा है वह मनुष्य उस दिनसे पुनर्वार संशयात्मक काम न करने के लिये सावधान होजाता है। परन्तु जो मनुष्य अत्यन्त नीच स्वभाव के हैं उनसे इस प्रकार का वर्ताव न करना चाहिये, क्योंकि उन्हैं यह समझ जाने पर कि हमारे ऊपर संशय आया है, फिर वे कदापि प्रामाणिक व्यवहार नहीं करते। इटली में एक कहावत प्रसिद्ध है, जिसका यह अर्थ है कि "संशय से विश्वास घटता है" परन्तु सच पूँछिये तो इसका विपरीत अर्थ करना चाहिये क्योंकि संशय उत्पन्न होने पर उसे निर्मूल सिद्ध करने के लिये विश्वास की और भी अधिक वृद्धि होती है।


संतान ११.

धूलिधूसरसर्वाङ्गो[१] विकसद्दन्तकेसरः।
आस्ते कस्याऽपि धन्यस्य द्वारि दन्ती गृहेऽर्भकः॥

कल्पतरु.

माता पिता का सन्तान सम्बन्धी आनन्द जैसे गुप्त रहता है उसी प्रकार तत्सम्बन्धी दुःख और भय भी गुप्त रहते हैं। माता पिता अपने


  1. धूलि जिसके सर्वांग में लिपट रही है और दन्त रूपी केसर जिसके खिल रहे हैं-द्वार पर ऐसा गज, और घरमें ऐसा बालक, किसी किसी धन्यही के यहां होता है; सबके यहां नहीं।