पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/५२

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कुरूपता।


यह समझते थे कि जो मनुष्य सबसे मत्सर रखता है वह एक का आश्रय लेकर उसी की सेवा में आनन्द से रत रहता है। तथापि अच्छे न्यायाधीशों और उच्च अधिकारियों के काम के विषय में उन का विश्वास उतना न था। परन्तु, हां, अच्छे दूत और अच्छे कानाफूसी करने वालों के काम का विश्वास अवश्य था। यही दशा कुरूप मनुष्यों की भी है। तथापि यह प्रमाणसिद्ध है कि धैर्यवान होने से कुरूप मनुष्य, अन्यकृत तिरस्कार से, फिर चाहै वह तिरस्कार द्वेष बुद्धि से उत्पन्न हुआ हो अथवा गुणों के न सहन करने से उत्पन्न हुआ हो—अपना बचाव अवश्य करते हैं। अतः कुरूप मनुष्य यदि कभी कभी गुणवान् देखपड़ै तो आश्चर्य न करना चाहिये। अजीसिलास[१], सालीमनका पुत्र जंगर, ईसाप[२], पेरू का प्रेसीडेंट गास्का इत्यादि पुरुष ऐसेही थे। साक्रेटीज[३] की भी गणना औरों के साथ इसी प्रकार के पुरुषों में की जासकती है।


  1. अजीसिलास, ग्रीस देश के स्पार्टाप्रान्त का राजा था। यह छोटे डील डौल का कुरूप और लँगडा था परन्तु बड़ा वीर और बड़ा शौर्यवान् था।
  2. ईसाप ग्रीस देश में ईसा मसीह के लगभग ६२० वर्ष पहिले हुवा है। इसने अत्यन्त मनोरञ्जक और सदुपदेशजनक छोटी छोटी कथाओं का एक ग्रन्थ नीतिपर लिखा है।
  3. साक्रेटीज ग्रीस के एथन्स नगर में एक प्रख्यात तत्त्ववेत्ता होगया है। इसकी प्रवृत्ति सदैव सत्य के खोज में रहती थी। तर्क वितर्क करने में यह उस समय अद्वितीय था। इसपर यह अपराध लगाया गया था कि यह तर्क द्वारा सत्य का असत्य और असत्य का सत्य लोगों को समझा कर उनकी बुद्धि में फेरफार उत्पन्न कर देता है। इसी को अपराध मान कर साक्रेटीज को राजाज्ञा से विष देदिया गया जिसे उसने प्रसन्नता से पान किया और अन्त समय तक सदुपदेश करता रहा।