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बेकन-विचाररत्नावली।


उसपर प्रेम रखनेवाला उसे समझता है और तदनुरूप उसकी स्तुति करता है! एक अत्यन्त सगर्व मनुष्य भी अपनेको जितना प्रशंसनीय नहीं समझता उतना प्रेम करनेवाला अपने प्रेमपात्रको समझता है; इसी लिए किसीने बहुत ठीक कहा है—कि, प्रेमभी करना और बुद्धि भी ठिकाने रखना ये दोनों बातें एक साथ नहीं होसकतीं। प्रेमके कारण विवेक जाता रहता है–यह केवल दूसरेही नहीं समझते किन्तु जिसपर प्रेम है वह भी समझता है। कहना तो यों चाहिए कि, प्रेमपात्रको इसका और भी अधिक ज्ञान होता है। परन्तु हां, जहां परस्पर प्रेमहै वहां यह नियम चरितार्थ नहीं होसकता, क्यों कि, कभी कभी प्रेमका बदला प्रेमही से दियाजाता है। जहां इस प्रकारका व्यवहार नहीं होता वहां प्रेमपात्र अपने प्रेमीका गुप्त रीतिपर तिरस्कार करताहै। इस बातको सत्य समझना चाहिए, क्योंकि बदला अथवा तिरस्कार–प्रेमकी यही दो गति हैं। इस प्रकारके प्रेमसम्बन्धसे मनुष्योंको अतिशय सावधान रहना चाहिए; कारण यह है कि, इससे अन्य हानियां जो होती हैं सो तो होतीही हैं–बडी भारी हानि यह होती है कि कभी कभी स्वयं प्रेमपात्रहीसे निराश होना पड़ता है। प्रेमातिरेकके कारण जो जो हानियां मनुष्योंको उठानी पड़ती हैं उनका कवियोंने समय समयपर यथार्थ वर्णन किया है। यह निश्चय समझना चाहिए कि, जो मनुष्य विषयजन्य सुखमें अधिक लिप्त रहता है उसे सम्पत्ति और विवेक दोनोंसे हाथ धोना पड़ता है। प्रेमका वेग मनकी दुर्बलतामें बहुत बढ़ता है। मनका दौर्बल्य अधिक सम्पत्ति अथवा अधिक विपत्तिकालमें विशेष उत्पन्न होता है; तथापि विपत्तिमें प्रेमातिरेकके उदाहरण बहुधा कम देखने में आते हैं। ऐसे अवसरपर अर्थात् सम्पदा और आपदाके समय प्रेमका विकार निरतिशय उद्दीप्त और प्रचण्ड होजाता है। अत एव स्पष्ट जान पड़ता है कि, यह विकार केवलमात्र मूर्खताका परिणाम है।

प्रेमके पाशसे जो अपना बचाव नहीं कर सकते उनकेलिए