अवरोधक होती है। खाने पीनेके सामानके बिना सैन्यका काम नहीं चल सकता; वह अवश्य साथमें होना ही चाहिए; इसलिए उसे छोड नहीं सकते। अतएव इस उठाने और लेचलनेके झगड़ेके कारण सेनाके प्रस्थान करनेमें विलम्ब होता है और कभी कभी ऐसे सामानकी रक्षा करनेके यत्नमें रहनेसे विजयसे भी हाथ धोना पडता है!
चाहै जितनी सम्पत्ति हो, सत्य तो यह है कि, उसमेंसे जितनी का सद्व्यय होताहै उतनीही सार्थक है। शेष जितनी है वह नाम मात्रकी सम्पत्ति है; उसका सुख केवल कल्पित है। सालोमनने कहा है कि, "जहां बहुत धन है वहां उसके भोग करनेवाले भी बहुत हैं, परन्तु धनीको उससे क्या लाभ? नेत्रोंसे वह भलेही उसे देखता रहै"।
बहुत अधिक सम्पत्ति होनेसे उस सबका उपभोग सम्पत्तिमान् मनुष्य स्वयं नहीं कर सकता। आवश्यकताकी अपेक्षा विशेष द्रव्य होनेसे मनुष्य उसको सुरक्षित रक्खेगा; दूसरोंको देनेके उपयोगमें लावेगा; तथा श्रीमान् होनेकी कीर्ति सम्पादन करेगाबस इतनाहीं; इससे अधिक, कहिए, उसको और क्या लाभ होसकता है? क्या तुम नहीं देखते हो कि, छोटे छोटे पत्थरों तथा अनोखी वस्तुओंका कितना मनमाना मूल्य कल्पना किया जाता है और उस विषय में कितने आडम्बरके काम आरम्भ किए जाते हैं? जानते हो यह सब किस लिए किया जाता है? केवल इस लिए जिसमें लोग यह समझैं कि, हां, अधिक सम्पत्तिका भी कुछ उपयोग होता है। स्यात् तुम कहोगे कि, मनुष्योंको संकटसे मुक्त करनेके लिए, द्रव्य काममें आता है, क्योंकि, सालोमनने भी ऐसाही कहा है। उसका कहना यह है कि, "धनवान् मनुष्य अपने मनमें यह समझता है कि, मेरा धन मेरी रक्षाके लिए एक प्रकारका कवच है"। इस वाक्यमें "मनमें" यह शब्द ध्यानमें रखना चाहिये। यह उक्ति बहुत ठीक है; परन्तु उसका अर्थ जैसा है वैसा लोग नहीं समझते। आरिष्टसे बचनेके लिए द्रव्यको मनही मन कवच भलेही माने रहो; परन्तु