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पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/८७

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बेंकन-विचाररत्नावली।


जिससमय क्रोध का वेगहो उस समय कोई उचित अनुचित बात न करके कुछ देर ठहर जाना चाहिए और मनमें यह मान लेना चाहिए कि अपने प्रतिपक्षीसे बदला लेने का समय अभी नहीं आया। तत्काल यह कल्पना करनी चाहिए कि आगे बदला लेने का समय आवेगा और आनेपर हम उस नराधम को अवश्यमेव इसके किए का फल चखावैंगे इस प्रकार उस समय चित्तको क्षुब्ध न करकै चुपचाप रहना चाहिए और क्रोधके वशीभूत न होजाना चाहिए।

क्रोधाविष्ट होनेपर क्रोधके कारण अनिष्ट होनेसे बचने के लिए; विशेष करके दोबातैं ध्यानमें रखनी चाहिए। एक तो यह कि क्रोधके वेगमें कठोरशब्दोंका उपयोग न करना चाहिए, विशेष करके मर्मभेदक वाक्यबाण तो कदापि न छोड़ने चाहिए। सामान्यशब्दोंसे अधिक हानि की संभावना नहीं रहती। यह भी स्मरण रहै कि क्रोधके कारण आवेशमें आकर दूसरेके गुप्तरहस्योंका स्फोट न करना चाहिए क्यों कि जो मनुष्य रहस्य भेद करता है वह समाजमें रखने के योग्यही नहीं है। दूसरी बात यहहै कि कलुषितचित्त होकर किसी कामको बीचहीमें छोड़ना अच्छा नहीं। कोप चाहै कितनाही प्रचण्ड क्यों नहो उससमय कोई काम ऐसा न करना चाहिए जिसके लिये पीछे पश्चात्ताप करना पड़ै।

तीसरा विषय–दूसरोंके क्रोधको प्रवृद्ध करने तथा बढ़ेहुए क्रोधको शान्त करनेके लिए समयानुसार काम करना उचित है। क्रोधको उत्तेजित करना हो तो जिस समय दूसरे मनुष्यका अन्तःकरण विकृत होता है और चित्त उसका क्षुब्ध है उस समय उसको भलीबुरी बातैं सुझानी चाहिए। इसके अतिरिक्त जिसके ऊपर क्रोधको बढाना है तद्विषयक ऐसी वार्त्ता करनी चाहिए जिससे दूसरे मनुष्यका अर्थात् जिसके साथ बात कररहे हैं उसका, अपमान होता है। क्रोधको वाढ़नेके जो उपाय हैं उनके प्रतिकूल उपायोंका अवलम्बन करनेसे उसकी शान्ति होती है। अर्थात् जिस समय मनुष्यका चित्त पहिलेसेही