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भाग्योदय।


भाग्यशाली होनेके लिए मुख्य करके दो बातें आवश्यक हैं। एक तो कुछ न कुछ कपट व्यवहार करना चाहिए और दूसरे प्रामाणिकता को मर्यादा के बाहर न जाने देना चाहिए। यही कारण है कि अतिशय देशाभिमानी और अतिशय स्वामिभक्त लोग कभी भाग्यवान् नहीं हुए; और वे हो भी नहीं सकते, क्योंकि जब मनुष्य अपनेको छोंड अन्य बातोंका विचार करने लगता है तब वह स्वतःकी अनुकूलता की ओर ध्यान नहीं देता।

सत्वर भाग्योदय होनेसे मनुष्य अपरिणामदर्शी होजाता है,और नित्य नए साहसके काम करने लगताहै; परन्तु परिश्रमपूर्वक शनैः शनैः जो उत्कर्ष हाताहै उससे मनुष्यकी योग्यता तथा सामर्थ्यकी बड़ाई होती है।

भाग्यवान् पुरुषोंका सन्मान करना और उनको पूज्य मानना उचित है। ऐसेमनुष्य विश्वसनीय और कीर्तिमान होते हैं इसी लिए लोग उनका इतना आदर करते हैं। विश्वास और कीर्ति यह दो सौख्यसाधनके आदिकारण हैं। विश्वाससे स्वयं सुखमिलताहै और कीर्तिसे दूसरों के द्वारा मिलताहै।

दूसरेके उत्कर्षको देखकर लोग मत्सर करने लगते हैं। इस मत्सरसे बचनेके लिए बुद्धिमान् पुरुष अपने अभ्युदयको ईश्वरदत्त अथवा भाग्यायत्त कहकर अपने महत्वको छिपाते हैं। इस प्रकारका कथन भाग्यशालीजनोंको विशेष हितावह होता है, क्योंकि देवतादिके मसादपात्र होनेमें उनका औरभी अधिक गौरव है। एकबार प्रचण्ड आंधीके समय अपने धूमपोतके नायकको सीजरने इसी अभिप्रायसे कहा कि "धूमपोतपर अपने अनुकूल दैवक समेत सीजरके उपस्थित रहते तुझको किसका भय है!" सीला[१] अपनेको भाग्यवान् कहताथा परन्तु महान्


  1. सीला रोममें एक प्रख्यात सेनानायक होगया है। यह बड़ाही उग्रस्वभाव वाला था। इसने अनेक बार बड़े बड़े वीरताके काम किए हैं, परन्तु सहस्रशः निरपराध मनुष्योंका वधभी इसने कराया है। इसको एक दूसरे मनुष्यने अपना उत्तराधिकारी बनायाथा जिससे इसे अकस्मात् अपार सम्पत्ति मिलगई थी। ६९ वर्षके वयमें ईसाके ७८ वर्ष पहिले इसकी जीवनलीला सम्वरण हुई।