सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(९४)
बेंकन-विचारत्नावली।


नियस[]; परन्तु औरोंको दिखलानेके लिए इन लोगोंने एकान्तवास स्वीकार कियाथा; किसी और सद्धेतु से नहीं।

परन्तु एकान्तवास कहते किसे हैं, और उसकी सीमा कहांतक है–इसका बहुत कम ज्ञान लोगोंको होता है। मनुष्योंके समुदाय को मित्रोंका समुदाय नहीं कह सकते; और परस्पर प्रीति न होनेसे मनुष्योंके मुखको मुख नहीं कह सकते; चित्र भलेही कहसकतेहै। इसीप्रकार जिनमें परस्पर स्नेह नहीं है उनका वार्त्तालाप वार्त्तालाप नहीं, किन्तु एक प्रकारका ताली बजाना है। लैटिनमें कहावत प्रसिद्ध है कि "बड़ा नगर बड़े एकान्त वास के बराबर है" यह कहावत, हमारे उपरोक्त कथन से, कुछ २ मिलती है। कारण यह है, कि एक विस्तृत नगर में मित्रजन–एक यहां एक वहां–इस प्रकार, दूर दूर अन्तर पर रहा करते हैं। अतः छोटे छोटे नगरोंमें, वारंवार मेल मिलाप होते रहने से जितना स्नेह होता है, उतना बड़े बड़े नगरोंमें बहुधा नहीं होता। परन्तु, हम, उपरोक्त लैटिन भाषाकी कहावत से भी आगे जाते हैं। हमारा तो मत-दृढमत यह है कि सच्चे मित्रका न होना पूर्णतया दुःखाई एकान्त वास है। बिना मित्रके सारा संसार केवल अरण्यमय है। जो मनुष्य, अपने स्वभावके कारण अथवा अपने मनोविकारके कारण, मैत्री करनेके योग्य नहीं; उसकी एतादृशी अयोग्यता उसके पशुत्वकी सूचक है; मनुष्यत्व की सूचक नहीं।

मैत्री का मुख्य फल यह है कि उसके योगसे नाना प्रकारके मनोविकारोंसे भरे हुए हृदयको रिक्त करनेका अवसर मिलता है। इस प्रकार विकाररूपी उफानोंको बाहर निकाल देनेसे हृदय हलका


  1. अपोलोनियस ईसवी सन् के प्रथम शतकमें हुआ है। यह बड़ा विद्वान बड़ा भ्रमणशील और बड़ा तपस्वीथा। इसने भी अनेक आश्चर्यजनक चमत्कार दिखलाए हैं।