और ठठोल रहती थी । यदि, किसी पर कटाक्ष करते थे तो भाषा भी व्यंग्यपूर्ण रहती थी । यदि शृंगार-रस लिखते थे तो भाषा भी मोहक और सौन्दर्य से पूर्ण रहती थी और यदि किसी गम्भीर विषय पर लिखते थे तो भाषा भी उत्कृष्ट और गम्भीर रहती थी । परन्तु उनके समी प्रकार के लेख कहानियों जैसे मनोरंजक होते थे। यह उनके लेखों की एक विशेषता थी। ___भट्ट जी के अब तक ४ ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी, पहली रचना 'नूतन ब्रह्मचारी सन् १८७७ ई० के लगभग प्रकाशित हुई थी। यह एक अनुपम उपन्यास है, जो 'हिन्दी-प्रदीप से उद्धृत कर पुस्तका- कार प्रगशित किया गया था। थोड़े ही समय में इस पुस्तक के कई . संस्करण हुए और हिन्दी संसार ने उसका यथोचित आदर किया। इसके कुछ समय बाद भट्ट जी को दूमरी पुस्तक 'शिक्षा-दान' 'हिन्दी- प्रदीप से उद्धत कर प्रकाशित हुई। यह एक प्रहसन है: इसका भी . वही मान हुश्रा और पुस्तक हाथों हाय विक गई। तीसरी पुस्तक गौ अजान और एक सुजान नामक एक प्रबन्ध 'हिन्दी-प्रटीप' से लेकर प्रकाशित हुई । यह पुस्तक हिन्दी साहित्य सम्मेलन की प्रथमा परीक्षा मे पाठ्य पुस्तक नियत की गई। इसके बाद बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी ने भी इसे अपने यहां की एडमिशन परीक्षा गे कोठ-बुक नियत किया फिर यू० पी० की टेक्स्ट-बुक कमेटी ने उसे एंग्लो वर्नाक्युलर स्कूलों में आठने दरजे के लिये सप्लीमेन्टरी भीडर स्वीकार किया। मह जी की -चौथी पुस्तक माहित्य-सुमन' नाम से प्रकाशित हुई। यह भह जी के "हिन्दी- प्रदीपर में लिखे गये चुटीले, रसीले २५ लेखों का सुन्दर संग्रह है । इसके भी अब तक कई संस्करण हो चुके हैं और यह भी शुरू से ही समोलन की परीक्षाओं में पाठ्य-पुस्तक रक्सी गई है । यू.पी. गवर्नमेन्टकी टेक्स्ट-बुक-फगेटी ने इन भी स्वीकार किया है। और . हिन्दी-कोपिद की परीक्षा में यह पाठ्य पुस्तक भी नियत है।
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