पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१४१

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नये तरह का जनून १२५ अँगरेजों का जूठा खाने ही में मुल्क को आजाद करने का उपाय सोच रक्खा है। किसी का औरतों की परदेदारी शिकस्त करने पर कस्द है। कितने नराधम ऐसे भी उपज खड़े हुये हैं जिन्होंने संशोधन ही को अपने लिये रोटो कमाने की एक हिकमत मान रक्खा है। किसी समाज " या कमेटी के सेक्रेटरी अथवा मैनेजर बन चन्दा उगाह-उगाह निगलते रहे । न जानिये के हजार रुपये पचै डाले और डकार तक न आई। ': "अगस्त्य मकरणं च भीमं च बवानलम् ।" - कांग्रेसवालो का जनून सबसे अधिक असाध्यरोग है; जिसके दूर होने का कोई उपाय हई नहीं । कर्मचारियों ने हजार सिर धुना कि इस विषवृक्ष की जड़ उखाड़ डालें, पर यह दिनदिन पुष्ट पडता जाता । है और अब तो अजर-अमर होगया। महात्मा ईसा का कहना है कि हमने बांसुरी बजाई तुम न नाचे। इन जुदी-जुदी धुनवाले संशोधकों का दल इकट्ठा किया जाय तो कई लाख भादमी निकलेंगे जो अपने-अपने जनून को पूरा करने में तन-मन से तत्पर हैं । कोई दूसरा देश होता तो अब तक न जानिये क्या हो जाता। यहाँ- . "भैस के आगे बोन बाजै भैस खड़ी पगुराय।" 'जो चाहे सो हो, इन्हें पागुर करने से काम । जिसने मुँह चीरा है, झख मारैगा खाने को दे ही गा। "जान को देत सुजान को देत अजान को देत सो तोह को दे है" एक वह कौम है कि साधारण से सुई और दियासलाई के कारखाने 'वाले करोड़पति हैं, साल में लाखों कमाते हैं। स्याही का कारीगर स्टी- फेन की ओर से एक हजार माहवारी तनखाह के कई श्रादसी-नौकर • हो खाली इस लिये भेजे गये है कि ये लोग शहर-शहर घूम इस बात की जाँच करते रहें कि उनकी पेटेंट स्याही की नकल कोई न वनाने 'पावे; नजानिये कै लाख साल की आमदनी एक स्यारी के कारखाने