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पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१७

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भट्ट-निबन्धावली
१--परंपरा

भट्ट-निबन्धावली १---परंपरा परंपरा, गतानुगतिक, मेडियाधसान, आदि कई एक मुहाविरे इसके सम्बन्ध में प्रयोग किये जाते हैं । अव मोचना चाहिये यह परंपरा है क्या वला ? यह किसी श्रुति का एक टुकड़ा है १ प्राप्तवाक्य है ? आर्षक्रम है ? धर्मशास्त्र या स्मृतिकारों की स्मृति का सिद्धान्त है ? नहीं यह यावत् श्रुति, स्मृति, धर्मशास्त्र, मन्वत्रिविष्णुहारीत आदि अठारहों स्मृतिकारों के दिमाग की चटनी या एसेन्स है। केवल इसना ही नहीं वरन् 'बाबा वाक्य प्रमाणम्' का निचोड़ है। यद्यपि 'शुद्ध लोक विरुद्ध महावाक्य के चरितार्थ होने की प्रणाली है, जिसकी क्रम से वंशपरंपरागत अनुवृत्ति के प्रागे महामुनि पाणिनि के सूत्रों की अनुवृत्ति झक मारती है, जिसके उद्दण्ड शासन के आगे कड़े-से-कड़े सरकारी कानून जो नित्य बदला करते हैं ठहरने की हिम्मत नहीं कर सकते। इस परंपरा की अनुवृत्ति को जैसा हमने अपनी लड़काई में देखा, आज ६० वर्ष के उपरान्त भी वैसाही पाते हैं, जब मात्र भी किसी तरह का हेर-फेर उसमें न हुआ। देश की स्थिति में कितनी उलट- पलट हो गई कितने घराने राव से रक और रंक से राब हो गये किन्तु इस परपरा के स्थायित्व में जरा फर्क न आया और कब से इसका प्रादुर्भाव है इसका पता लगाना हम क्या हमारे प्रपितामह के प्रपितामह की शक्ति के बाहर है। हिन्दुस्तान ऐसे गिरे देश का तो कहना ही क्या है ! कौनसी ऐसी स्वर्ग सदृश भूमि है, कौन ऐसी सभ्यातिसभ्य