पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/९८

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२०-दीर्घायु मनुष्य के लिये आयु भी उन भाग्यवानी बातों में है जिसके बडी होने की इच्छा सब को होती है और जिसके लम्बे होने से कोई कभी नहीं अघाता। पैसठ बरस के हो गये, पोते-नाती कोली और दर्जनों की संख्या तक पहुंच गये, अंग-अग शिथिल पड़ गये, उठते-बैठते काँखते हैं । कान ने अलग जवाब दे दिया, सुन नहीं पड़ता, कमर . झुक गई, आँख अलग धोखा दे गई, नजर माटी पड़ गयी, चश्मे की हाजत हाने लगी. तो भी जीने से न अघाने । रोज भोर उठ देवता- पितर मनाते हैं, थोडा और जीते, अनुश्रा के भी लड़का हो जाता, परपोता देख लेते, सोने की सीढ़ी चढ़ तब मरत तो अच्छा होता । किन्तु विवेकी बुद्धिमान 'संसार की असारता ने जिसके मन में भरपूर कदम जमा लिया है वे • लोग ऐसा नहीं मानते । वे अल्पायु ही को बड़ी बरकत कहते है। जिकिर है, किसी फकीर कामिल ने नाके नवाब खान-खाना से कहा, मैं तुम्हारे लिये दुना करता हू और तुमको एक ऐसी जड़ी-बूटी दूंगा कि जिसे खाकर तुम या तो अमर हो जानोगे या हजारों वर्ष जिओगे । नवाब स्वानखाना ने जवाब दिया, मैं एसी बूटी कमान खाऊँगा । फकीर साइव मुसकिगये और पूछा, क्यों ? नवाव वोले, यह बाप की बूटी आपही को मुबारक रहे, मैं अमर या . • दीर्घायु हो के क्या करूंगा। मेरे वन्धु मित्र लोग कुटुम्ब सवों की मौत मेरे सामने होगी तो में कहा तक उनके वियोग का दुःख सहत्ता रहूगा । मैं बाज अाया तुम्हारी दुआ श्रीर परकत से, मुझे ऐसा यूटी न चाहिये।