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भट्ट निबन्धावली

"वियोगदुःखानुभवानभिज्ञैं: काले नृपाशं विहितं ददद्भिः।
अहार्यशोभारहितैरमायैरैक्षिष्ट पुंभिः प्रचितान्सगोष्ठान्॥
स्त्री भूषणं चेष्टितमप्रगल्भं चारूण्यबक्राण्यभिवीक्षितानि।
ऋजूंश्चविश्वासकृतः स्वभावान् गोपाङ्गनानां मुमुदे विलोक्य॥
विवृत्तपाश्वं रुचिरांगहारं समुद्वाहमुनितम्वविम्वम्।
आमन्द्र मन्थध्वनिदत्ततालं गोपाङ्गनानृत्यमनन्दयत्तम्॥

श्री रामचन्द्र विश्वामित्र के साथ धनुष यज्ञ में जाते समय मार्ग में जो ग्राम देखे हैं उन्हीं के वर्णन में ये श्लोक हैं। भारवि और माघ ने कहीं-कहीं ग्राम्य शोभा का वर्णन किया है पर भट्टि का यह वर्णन सर्वोत्कृष्ठ और बहुत ही प्राकृतिक है।

अगस्त; १९०१
 


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