J १४२ भट्ट निबन्धावली माघ कवि ने शिशुपाल बध के ग्यारहवे सर्ग मे प्रातःकाल का बड़ाही अनूठा वर्णन किया है जिसके पढ़ने वाले को प्रातः परिभ्रमण का पूर्ण अनुभव घर बैठेही प्राप्त हो सकता है। अब धातु वाले सोने को लीजिये जिस से हमारा प्रयोजन धन से है । ससार के बहुत कम व्योहार ऐसे हैं जिनमे इसका काम न पड़ता हो; क्या फकीर क्या अमीर राजा से रङ्क तक सब इसकी चाह मे दिन रात व्यग्र रहते हैं । कहावत है- "इक कंचन इक कुचन पर किन न पसारो हस्थ' "सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ति" इस सोने की लालच मे पड़ मनुष्य कभी को वह काम कर गुज़रता है जिस से उस की मनुष्यता मे धब्बा लग जाता है इस कारण सब लोग. सोनेही को दोष देते हैं। अर्थात् पाप-कर्म करने वाले को तो सब बचाते हैं और उस पाप के कारण सोने को जो एक जड़ पदार्थ है सम्पूर्ण अधर्म और अन्याय का मूल समझते हैं। सोने के बल आदमी राई को पर्वत और पर्वत को राई कर दिखाता है किन्तु संसार की और सब वस्तुओ के समान यह भी क्षण भंगुर है। बराबर देखते सुनते चले आये हैं कि लक्ष्मी चंचला है और एक पति से सन्तुष्ट नहीं रहती। जिस राह मे इसे डालिये सोना एक बार अपना पूर्ण वैभव प्रकाश कर देगा पर अफसोम नेक राह मे यह बहुत ही कम डाला जाता है। कोई विरले विरक्तों की तो बात ही न्यारी है नहीं तो संसार के असार प्रपंचों मे आसक्त जन इसके लिए कोई ऐसा घिनौने से घिनौना काम नहीं बच रहा जिसे वे न कर गुजरे हों; कहाँ तक कहें इसके लिए भाई भाई कट मरते हैं, बाप बेटे की जान ले डालता है। तवारीखों मे कई एक गजा और बादशाह इसके उदाहरण हैं। किसी अगरेजी कवि का कथन है- For gold his sword the hireling ruffian draws, For gold the hireling Judge distorts the Laws, -
पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१४०
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