पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१४९

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नई बात की चाह लोगों में क्यों होती है । १४९' हम आगे बढ़ सकते हैं और जिसके प्रचलित होने से हमारी कुछ, बेहतरी है वह सब इस सनातन के विरुद्ध है आपस का सह भोजन, पन्द्रह या सोलह वर्ष के उमर की कन्या का विवाह, एक वर्ण के दूसरे वर्ण के साथ योनिक-सम्बन्ध विवाह इत्यादि दूसरे देशों में आना जाना इत्यादि जितनी हमारी भजाई को बाते हैं सबों को सनातन धर्म मना करता है और हमे इस कदर जकड़े हुये है कि ज़रा भी हिल डोज नहीं सकते तब क्या समझ हम सनातन की खैर मनावे । ___ अस्तु, इस नये और पुराने के विवरण में अप्रासंगिक भी बहुत सा गाय गये सारांश सब का यही है कि हमारी तरक्की की अाशा हमें तभी होगी जब पुरातन और सनातन की ओर से तबियत हट नूतन की कदर हमारे चिच मे स्थान पावेगी और अपनी हर एक बातों में नये नये परिवर्तन का प्रचार कर सभ्य देश और सुसभ्य जाति के समूह में गिनती के लायक हम अपने को बनावेंगे और अपने नवाभ्युत्थान से चिरकाल से जो सभ्यता और उन्नति के शिखर पर चढ़े हुये हैं उन्हें शरमावेंगे। जो एक दिन अवश्य होगा इसमें सन्देह नहीं उसके होने में जितनी देर हो रही है उतना उमदा मौका हाथ से निकला जाता है। सितम्बर, १८९६