पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/३६

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मनुष्य के जीवन की सार्थकता। हमारे जीवन की सार्थकता क्या है और कैसे होती है इस पर जुदे- जुदे लोगों के जुदे-जुदे विचार और उद्देश्य हैं, अधिकतर इसका उद्देश्य समाज पर निर्भर है अर्थात् हम जिस समाज मे जैसे लोगों के बीच रहते हैं उनके साथ जैसा बर्ताव रखते हैं उसी के अनुमार हमारे जीवन की सार्थकता समझी जाती है । यद्यपि कवियो ने मनुष्य जन्म की सार्थकता को अपनी अपनी उक्ति के अनुमार कुछ और ढङ्ग की हुलका लाये हे जैसे भारवि ने कहा है। स पुमानर्थवजन्मा यस्य नानि पुरस्थिते । नान्याड गुलि ससभ्यति संख्याया सुधताड.गुलि । पुमान् पुरुष वह है जिसमे पुरुषार्थ का अकुर हो. सार्थक जन्म वहीं पुरुष है कि जिसके पौरुपय गुणो की गणना में जो अगुली उसके नाम पर उठे वही फिर दूसरे के नाम पर नही-अर्थात् जो किसी प्रकार गुण में एक्ता प्रात किये है ससार म उसके बराबरी का दूसग मनुष्य न हो । इन तरह की बहुतेरी कवियों की कल्पनाये पाई जाती हैं किन्तु यहाँ न कल्पनायो में हमारा प्रयोजन नहीं है जिसे हम जीवन की मार्थकता कहेगे कर बात ही निराली है। समाज के नाम के अनुसार सफल जीवन इमेलवना कहा जमा- यस्य दानजि सि गश्वो युधि निर्मिता : यसपानजिना द्वारा साल नस्य जीनितम् ॥ जिगने नगर ममय धन के मित्रो अागनगे कर लिया: जिननं रागी संग्राम में जीना. नार माह ने और कपड़ों से जिलगे गाली किया जी का जीवन मानगो माल