सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भट्ट निबन्धावली अव इस समय दस बीस की नौकरी भी ऐसी सोने की खेती हो रही है कि हमारे नव युवक इसके लिये तरस रहे हैं बड़े से बड़ा इमतिहान पास कर अर्जी हाथ में लिये वगले-बगले मारे फिरते हैं और दुरदुराये जाते हैं। उसमे भी वर्तमान समय के कर्मचारियो की कुछ ऐसी पालिसी हो रही है कि सौ रुपये से ज़ियादह की नौकरी नेटियों को न दी जाय- सेवा विक्रीत काया इस नौकरी मे भी वह समय अब दूर गया जब दो एक जुमले अगरेज़ी के लिखने और बोल लेने ही मात्र से सैकड़ो रुपये महीने की नौकरी सुलभ थी। सच है- गतः स कालो वत्रास्ते मुक्तानां जन्म शुक्तिषु । उदुम्बरफलेनापि स्पृहयामो ऽधुना वयम् ॥ आज़ादगी के अनन्य भक्त कोई कोई नव युवक स्वच्छन्द जीवन (इडिपेन्डेन्ट लाइफ ) की धुन धाँधे हुये कोई आज़ाद पेशा किया चाहते हैं तो पास पूजी नही कि हौसिले के माफिक कुछ कर दिखावे । कपनी अथवा पणवन्धगोष्टी की चाल अपने यहाँ न ठहरी कि उन्हे कहीं से सहारा मिलता । हमारा ऐसा सर्वस्व हरण होता जाता है कि न तो धन रहा न कोई जीविका बच रही कि ये लोग अपना हासिला पूरा करते । जिनके पास रुपया है वे रुपयों के सूद के घाटे का परता पहले फैला लेंगे तो टेटा ढीला करेंगे। यों चाहे रुपया रक्खा रह जाय एक पैसा व्याज न आवे पर रुपया कहीं लगाने के समय व्याज का परता जरूर फेला लेगे। जिन वेचारों ने हिम्मत बांध कुछ रुपया कहने सुनने से लगाया भी तो पीछे उन्होंने ऐसा पचा खाया कि चित्त हो गये। उन्हें कोई ऐसा दियानतदार यादमी न मिला कि उनका उत्साह नढ़ता और मिल कर हम कोई काम करना नहीं जानते यह कलंक हम से दूर हरता। मा होती तो मोसी को कौन झीखता हम मिलना जानते होते नां वर्तमान दात्यभाव की दशा को क्यों पहूँचते । अस्तु,- इस जीवन के राफलता के अनेक और दूसरे दुसरे उदाहरण है। गहा को मिग्या मानने वाले प्रशास्मि की धुन यौधे हुगे स्वभाव