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पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/४

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का पुट और सानुप्रासिक शैली चली आ रही थी। इन सब को इन्होंने भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र के सहयोगी और सहचारी बन कर दूर किया और हिन्दी को शुद्ध और स्वच्छन्द बना कर इस गद्य शैली को सर्वव्यापक और सर्वमान्य बना दिया। हिन्दी-गद्य मे साहित्य का अलौकिक गुण भारतेन्दु जी के बाद इन्हीं के प्रभाव से पूर्ण रूप में आया है।

हिन्दी-गद्य के शब्द-भडार को समृद्ध बनाने में भी इन्होंने बहुत कुछ प्रयत्न किया। संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित और शुद्ध हिन्दी भाषा के अनन्य प्रेमी होते हुए भी वे परम्परागत प्रचलित शब्दों के व्यवहार में ही नहीं अटके और न सस्कृत शब्दो की भरमार से भाषा को क्लिष्ट बनाने में ही अपनी शक्ति नष्ट की। उनका कहना था कि यदि किसी भाव को उत्तमता के साथ प्रकट करने के लिए अपनी भाषा में ठीक- ठीक शब्द न मिलें और विदेशी भाषा में वैसा उपयुक्त शब्द मिलता हो तो उसके व्यवहार करने मे दोष न समझना चाहिये। इसी सिद्धान्त के अनुसार उर्दू तो क्या वे प्रायः फारसी अरबी या अंग्रेजी आदि भाषाओं के शब्द भी प्रयोग किया करते थे। जब कभी उन्हे किसी भाव को व्यक्त करना अभीष्ट होता और हिन्दी में अंग्रेजी का पर्याय- वाची शब्द न मिलता ओर उसको पूर्णरीति से स्पष्ट करने में अंग्रेजी शब्द ही समर्थ मालूम होता तो वे निस्संकोच उन्हें भी ब्रैकट के अन्दर लिख देते थे। इसी प्रकार यह कभी कभी निवन्धों के शीर्षक भी हिन्दी के साथ अंग्रेजी में भी दिया करते थे जैसे -- "Are the nati- ons and individual two different things?" "Peace is sought by war" इत्यादि।

वह नए नए शब्द और मुहावरों को गढ़ने में भी बड़े सिद्धहस्त थे। किसी आशय को प्रकट करने के लिए जब उन्हें ठीक-ठीक शब्द नहीं मिलते थे तो वे तुरन्त नए नए शब्द और मुहावरे बना लेते थे। इनके निन्बधों में स्थान स्थान पर सुन्दर मुहावरों की