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पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/८५

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२०-स्थिर अध्यवसाय या दृढ़ता अनेक मानसिक शक्तियों में अध्यवसाय या दृढ़ता भी मन की एक अद्भुत शक्ति है और मनुष्य के प्रशंसनीय गुणो मे उत्कृष्ट गुण है। यह दृढता स्वाभाविक होती है पर अधिकरतर विद्या, अभ्यास या कल्चर के द्वारा आती है। स्वाभाविक दृढचित्त को निस्सन्देह विद्या से बड़ा लाभ यह होता है कि वह विद्या का फल विवेक को काम में लाय बुराई की ओर अपने दृढ सकल्प को नहीं झुकने देता न दुःसग का असर उस पर व्यापता है। मूर्ख नासमझ का दृढ निश्चय हठ मे परिणित हो जाता है। हठीले का हठ कभी को अतीव भयकर होता है और यदि कही वह ज्ञान-लव-दुर्विदग्ध हुआ, अर्थात् न वह पूर्ण विद्वान् हैं न निरा मूर्ख या जाहिल है, अधकचड़ा है, जैक आफ आल ट्रेड मास्टर आफ नन । ऐसे को तो भर्तृहरि लिखते हैं ब्रह्मा भी समझा के राह पर नही ला सकते तब मनुष्य किस गिनती मे है ? अज्ञः सुखमाराध्यः, सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः ज्ञानलव-दुर्विदग्धं ब्रह्मा पितं नरं न रंजयाति ॥ कही और ठौर तरोताज़गी पा सके मन की दृढता का यह एक दूसरा अनोखा दृष्टान्त है । जब यह बात है तो दृढ़चित्त वाले अपनी ऊँची समझ और ऊँचे ख़यालात से दुर्वल चित्त वाले को ऐसा अपने वश में कर लेते हैं कि राजा अपनी चतुरंगिणी सेना साज कर भी वैसा जल्द लोगों को आधीन नहीं कर सकेगा। वक्ता के लिए चित्त की दृढ़ता वड़ी उपकारी है, दृढ मनवाला वक्ता मधुकर के समान ज्ञानी अज्ञानी प्रत्येक के मन में प्रवेश कर और प्रत्येक के मनोमुकुल का मधु निकाल निकाल जगत् को बहुत कुछ लाभ पहुंचा सकता है। दृढ मन वाला -