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पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/९४

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m भट्ट निबन्धावली "पढ़े लिखे श्रोनवौ नहीं नाम महम्मद फाज़िल" चार वेद की कौन कहे चार अक्षर से भी भेट नहीं है कोरे लण्ठदास पर कहलाने को द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी। इसी तरह इस साल वर्षा और खेती मे उपज बराय नाम को है। दिवालदार रोजगारियों में इमानदारी बराय नाम है। अँगरेज़ और हिन्दुस्तानियों के मुकाबिले हाकिमों को इन्साफ बराय नाम है। कितनो का नाम दाम के कारन, नाम के लायक कोई काम उनसे न भी बन पड़ा हो तो भी दाम ऐसी चीज है कि उनका नाम लेना कैसा वरन् खुशामद करनी पड़ती है। ऊपर की वर्षा समान गोधनदास, तिनकौड़ीमल, चिथरूदास के नामो मे कौन सी खूबसूरती है। इत्तिफाक से ऐसों के पास बहुत सा रुपया जुड़ गया न आप पेट भर खाता है न दूसरों को खाते पहनते देख सकता है न उस रुपये से यह लोक पर लोक का कोई काम निकलता है । समाज मे यहाँ तक मनहूस समझा गया है कि सवेरे भूल से कहीं जबान पर आ जाय तो दिन का दिन नष्ट जाय । ऐसों से सरोकार केवल दाम ही के कारन लोग रखते हैं और हाजत रफा करने की भाँति उसके पास जाना पड़ता है इत्यादि, काम और नाम का विवरण पढ़ने वालों के चित्त विनोदार्थ यहाँ पर लिखा गया। अन्त में इतना और विशेष वक्तव्य है कि काम और नाम दोनों का साथ दाम पल्ले रहने से अच्छा निभ सकता है अर्थात् दाम वाला चाहे तो अपने कामों से नाम पैदा करना उसके लिये जैसा सहज है वैसा औरों के लिये नहीं है। जुलाई १८६६