पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/३३

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विलासः१]
(१३)
भाषाटीकासहितः।

आते तो उसका उत्तर इस अन्योक्ति में है दुष्टौं से उपकार तो होनेही का नही उलटे उनसे कुवाच्य सुनने पड़ते हैं)

एकस्त्वं गहनेऽस्मिन् कोकिल न कलंकदाचिदपि कुर्याः।
साजात्यशंकयाऽमी न त्वां निघ्नंतु निर्दयाः काकाः॥२५॥

हे कोकिल? तू अकेला इस बन में कदापि शब्द न कर जिससे तुझे अपना सजातीय समझे ये निर्दई काक तुझै न मार अर्थात् जो त बोलेगी तो काक यह समझेंगे कि हमारे सजातियों ने यह बोली कहां सीखी, इससे वे तेरी अवश्य ताडना करेंगे; अथवा, तू उनसे अपने बालकों का प्रतिपालन कराती है इससे वे मनमें मत्सर मान तेरा अनहित चाहैंगे (दुर्जनों की सभामें सज्जन को मौनही[१] धारण करना उचितहै)

तरुकुलमुखमापहरां जनयंतीं जगति जीवजातार्तिम्।
केन गुणेन भवानोतात हिमानीमिमां वहसि॥२६॥

हे हिमालय? वृक्षों की शोभा को नाशकरनेवाले और संसारिक प्राणियों को क्लेश देनेवाले इस हिम समूह को तू क्यों धारण करता है? (सत्पुरुषने यदि कोई कुत्सित कार्य किया तो उसको इस अन्योक्ति से शिक्षा करनी चाहिये इससे प्रशं-


  1. 'विशेषतः सर्वविदां समाजे विभूषणं मौनमपंडितानाम्'।