माकंद न प्रपेदे मधुपेन तवोपमा जगति॥२९॥
हे आम्रवृक्ष! मधुप ने कोकिल से पूंछा और आसमंताद्भाग के सर्व वृक्षो कों भी देखा परन्तु तेरी उपमा देवे योग्य उसे एक भी न मिला (उस दाता, राजा अथवा गुणी की प्रशंसा है जिसकी समता दूसरा नहीं कर सकता)
तोयैरल्पैरपि करुणया भीमभानौ निदाघे।
मालाकार व्यरचि भवता या तरोरस्य पुष्टिः॥
सा किं शक्या जनयितुमिह प्रावृषेण्येन वारां।
धारासारानपि विकिरता विश्वतो वारिदेन[१]॥३०॥
हे मालाकार! [मालि] ग्रीष्म ऋतु में प्रचंड सूर्यसे संतप्त कियेगये इस वृक्ष को अल्पोदक सिंचन से जैसा तूने पुष्ट किया है वैसी पुष्टि वर्षा काल में सर्व ओर वारिधारा बरसाने वाले मेघसे क्या हो सकेंगी! अर्थात् न हो सकेगी (आपत्ति में किंचित् मात्र साहायता करने से जो सुख होता है सो सुदिल में अतुल संपत्ति दान से भी होना संभव नहीं)
आरामाधिपतिर्विवेकविकलो नूनं रसा नीरसा।
वात्याभिः परुषीकृता दश दिशश्चंडातपो दुःसहः॥
एवं धन्वति चंपकस्य सकले संहारहेतावपि।
त्वंसिंचनमृतेन तोयद कुतोऽप्याविष्कृतोवेधसा३१॥
- ↑ मंदाक्रांता छंद।