पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/५५

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विलासः१]
(३५)
भाषाटीकासहितः।

उसके परोपकार गुण का वर्णन किया इससे इस आर्या में 'व्याजस्तुति' और 'व्याजनिंदा' अलंकार की संसृष्टि हुई)

अन्या जगद्धितमयी मनसः प्रवृत्तिः।
अन्यैव कापि रचना वचनावलीनां॥
लोकोत्तरा च कृतिराकृतिरातहृद्या।
विद्यावतां सकलमेव गिरां दवीयः॥६९॥

विद्वानों के व्यापार, वाणी से वर्णन नहीं हो सकते; संसार का हित करनेवाली उनकी चित्तवृत्ति एक प्रकारकी और उनके बोलने चालने की पद्धति और ही प्रकारकी होती है, उनके कार्य लोकोत्तर हुवा करते हैं और उनका स्वरूप दुःखियों के दुःख का हरण करनेवाला होताहै (सामान्य रीति से विद्वान प्रशंसा है)

आपद्गतः किल महाशयचक्रवर्ती।
विस्तारयत्यकृतपूर्वमुदारभावम्॥
कालागुरुर्दहनमध्यगुतः समन्ता।
ल्लोकोत्तरं परिमलं प्रकटीकरोति॥७०॥

श्रेष्ठजन आपत्तिकाल में उस उदारता को विस्तार करते हैं जिसे उन्होंने पहिले कभी (सुखावस्था में) नहीं प्रकाश किया था (सत्यही है) अग्नि में रखने से कालागुरु अपनी परमोत्तम सुगंध को प्रकट करता है। तात्पर्य यह कि सतपु-