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पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/८५

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विलासः२]
(६५)
भाषाटीकासहितः।

(अब जगन्नाथ राय जी अंगकी कोमलताका वर्णन करते हैं और कहते हैं, हे भामिनी!) यदि तेरे अंग की कोमलता (की अपर पदार्थ से साम्यता करना चाहैं तो असंभव) है; सरोजमाल (तेरी कोमलता सन्मुख) अत्यंत कठोर (लगते है,) कमलनाल की कोमलता विचारणीय ही नहीं (जब इन के सदृश कोमल वस्तुओं की यह दशा है) तो फिर पल्लवों की कथा का क्या नाम लेना, अर्थात् वे बिचारे क्या साम्यता करैंगे तात्पर्य यह कि तेरी अनुपम कोमलता की उपमा मिलना परम दुस्तर है

स्वेदाम्बुसान्द्रकणशालिकपोलपाली दोलायितश्रवणकुंडलवंदनीया।
आनंदमंकुरयति स्मरणेन कापि रम्या दशा मनसि ने मदिरेक्षणायाः॥३॥

सुरा समान अरुण नेत्रवाली (भामिनी) की वह रमणीय दशा, जिस में प्रस्वेद जल के बने कणों से (कोमल) कपोल भाग शोभित हो रहा है और दोलायमान [हिलने वाले] श्रवण कुंडल से वंदनीय है जो, स्मरण होने से (मेरे हृदय में) आनंदांकुरका उद्भव करती है। (यह विपरीत रति वर्णन है)

कस्तूरिकातिलकमालि विधाय सायं स्मेरानना सपदि शीलय सौधमौलिं।
प्रौढिं भजंतु कुमुदानि मुदामुदारामुल्लासयंतु परितोहरितो मुखानि ४