पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/९६

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[शृंगार-
भामिनीविलासः।

हृदय में शैवल [सिवार] का अनुषंग [संपर्क] करने वाली (अर्थात् कलुषित हृदयवाली) और अंगों को बार बार कभी इधर कभी उधर डालनेवाली यह अति दीना (नायिका), निज प्रियतम के नाम को उच्चारण करनेवाली सखियों के मुख को अवलोकन करती है।

इत एव निजालयं गताया वनिताया गुरुभिः समावृतायाः॥
परिवर्त्तितकन्धरं नतश्रु स्मयमानं वदनांबुजं स्मरामि[१]॥२७॥

यहां से निज गेहको गमन करनेवाली, गुरुजनौंके मध्यस्थित भामिनीका; फिरी हुई ग्रीवा और नम्र नम्र भकुटीवाला हास्ययुक्त मुखकमल, में स्मरण करता हूं।

कथय कथमिवाशा जायतां जीविते मे मलय-
भुजगवांता वांति वाताः कृतांताः। अयमपि
खलु गुंजन्मंजु माकंदमौलौ चुलुकयात मदीयां
चेतनां चंचरीकः[२]॥२८॥

कहिए[३] मेरे जीवनकी क्या आशा है? (उधर) मलयाचलसे सर्पोंकी उगलीहुई कालके समान वायु वहती है (इधर) आम्र पै मंजु गुंजार करने वाले मधुकर मेरे चित्तको हरण करते है?

निरुध्य यांती तरसा कपोती कूजत्कपोतस्थ


  1. 'माल्यभारा'।
  2. 'मालिनी।
  3. विरही की उक्ति है।