अग्नि में प्रवेश करके भस्म हो गई। मर्द जो बचे सो तलवारें लेकर गढ़ के बाहर निकले और वीरता से लड़ते हुए शत्रु के हाथों संग्राम में कट मरे। यह घटना १३०३ ई॰ की है। इसके पीछे अलाउद्दीन जैसलमेर पहुंचा और आठ महीने घेरने के पीछे जैसलमेर का क़िला भी आधीन कर लिया। यहां भी वही हाल हुआ जो पहले चित्तौड़ में हो चुका था अर्थात् चार हज़ार राजपूतनियां अच्छे कपड़े और गहने पहिन कर आग में कूद पड़ी और जलकर स्वाहा हो गईं और राजपूत लोग घोर संग्राम करते हुए एक एक करके कट मरे। इस भांति प्राण देने को राजपूत लोग अपनी बोली में जौहर कहते हैं। जब अलाउद्दीन ने राजपूतों को जीत लिया और गुजरात और राजपूताने के बड़े बड़े गढ़ छीन चुका तो दखिन के विजय को चला।
५—अलाउद्दीन का सब से बड़ा सर्दार मलिक काफ़ूर था। यह असल में हिन्दू था पर पीछे मुसलमान हो गया था। अलाउद्दीन नहीं चाहता था कि आप उत्तरीय भारत छोड़ कर दखिन के विजय को जाय क्योंकि उसे डर था कि ऐसा न हो मुग़ल फिर चढ़ आयें अथवा कोई सर्दार बिगड़ बैठे और उसका राज छीन ले। इस कारण उसने एक बड़ी भारी सेना के साथ मलिक काफ़ूर को दखिन की ओर भेजा। मलिक काफ़ूर ने हर एक चढ़ाई में एक नया देश छीना और बहुत सा माल लूट कर दिल्ली को लौट आया।
६—१३०९ ई॰ में काफ़ूर गोदावरी नदी के दक्षिण वारङ्गल जो तिलङ्गाना राज्य की राजधानी थी पहुंचा; फिर देवगिरि की ओर चला। देवगिरि का राज्य जलालुद्दीन के समय में अलाउद्दीन ने जीत लिया था परन्तु थोड़े दिनों से अलाउद्दीन को कर नहीं मिला था। अलाउद्दीन की हिन्दू रानी कमलादेवी ने मलिक काफ़ूर से कह रक्खा था कि मेरी छोटी लड़की देवल