पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१२७

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हिन्दू लड़े परन्तु सब जगह हारे। अफ़गानों ने रत्ती रत्ती मन्दिरों को लूट लिया। उनकी मूर्तियां बाहर फेकदीं और तोड़ डाली। जिन लोगों ने उनको मारने की चेष्टा की उनको मारा। हलीबैद जो मैसूर में है उस में ९० बरस से बल्लाल राजा धीरे धीरे एक अत्यन्त सुन्दर और बिशाल मन्दिर बनवा रहे थे जोकि इस देश में अद्वितीय था। मुसलमानों ने उसका बनना बन्द करा दिया। आज तक वह मन्दिर उसी भांति अधबना पड़ा है।

३—ग़ोरी और खिलजी बादशाहों के अफग़ान और पठान सैनिक अनेक जातियों और झुंडो के थे। हर एक का अलग अलग देश अफ़गानिस्तान की पहाड़ी घाटियों में था। इनके सिवा तुर्किस्तान और मध्य एशिया के मुल्कों के लोग लूट खसोट की आशा पर ग़ोरी बादशाहों की सेना के साथ भारत में आये थे। जो आदमी इस भांति कुछ दल इकट्ठा कर लेता या धनी बन बैठता था। जब अलाउद्दीन और काफ़ूर और खिलजी और तुगलक वंश के बादशाहों ने दखिन को रौंद डाला तो वह आधीन देश की रक्षा और प्रबंध के लिये ठांव ठांव अफग़ान सरदारों को छोड़ आये जिस में यह हिन्दू राजाओं से सदा कर लेते रहें और उसको बढ़ने न दें। समय के बीत जाने पर जब दिल्ली के अफ़ग़ान बादशाह दुर्बल हो गये और इन अमीरों को अपने बस करने के योग्य न रहे तो यह स्वाधीन बादशाह बन गये।


२९—बहमनी और विजयनगर के राज्य।

१—मुहम्मद तुग़लक के राज में ऐसा गड़बड़ मचा कि दखिन के सारे मुसलमान बाग़ी हो गये और हसन गंगू जो सब से जबर्दस्त था सन् १३४७ ई॰ में गुलबर्गे को अपनी राजधानी बनाकर