पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१५६

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३—जब बाबर बादशाहत करता था तो यह भी उसके दर्बार में पहुंचा और एक पद पर नियत किया गया। एक दिन दस्तरख़ान पर कुछ खाना आया जिसे चमचे से खाना चाहिये था। शेरखां चमचे से खाना नहीं जानता था। और सभासद उसे देख कर हँस रहे थे। उसने तलवार म्यान से निकाली और उस बस्तु के छोटे छोटे टुकड़े किये और उन्हें खाता गया; इसबात का कुछ बिचार न किया कि कोई मुझ पर हँस रहा है। बाबर ने जो देखा कि शेरखां दर्बार के आचार नहीं जानता और दस्तरख़ान पर भी तलवार से काम लेता है तो अमीरों से बोला कि यह सर्दार अपनी तलवार के बल से किसी ऊंचे पद पर पहुंचेगा।

४—जब हुमायूं ने उस पर चढ़ाई की और चुनार गढ़ ले लिया तो शेरखां ने बिहार के रोहतास गढ़ को छीन कर अपने आधीन कर लिया जो चुनार गढ़ से भी मज़बूत था। रोहतास गढ़ उसने बड़ी चतुराई से लिया। वहां के राजा से कहा कि मैं अपने परिवार और धन को किसी सुरक्षित स्थान में रखना चाहता हूं। जो मैं हुमायूं से लड़ाई में मारा जाऊं तो तुम मेरा धन ले लेना। राजा ने यह बात स्वीकार की; इसपर एक हज़ार डोले तय्यार हुए। शेरखां ने आगे के दो तीन डोलों में तो औरतों को बिठा दिया और सब में हथियार बंद सिपाही बिठा दिये। जब डोले क़िले में पहुंचे तो राजा ने अगले दो तीन डोलों के पर्दे उठा उठा कर देखे। उनमें स्त्रियां थीं। शेरखां का चोबदार बोला कि यदि कोई बाहरी मनुष्य हमारी बेगमों को देखेगा तो हमारे मालिक का बड़ा अपमान होगा। राजा ने समझा कि ठीक कहता है और बचे हुए डोलों को बिना देखे जाने दिया। जब सब डोले क़िले के भीतर आगये तो अफ़ग़ान