७—दखिन को जीतने का ध्यान इसे जन्म भर रहा। बहमनी राज्य के टूटने पर जो पांच रियासतें दखिन में स्थापित हुई थीं इनमें से तीन अर्थात बीदर, बरार और अहमदनगर तो इसके बाप ही के राज में जीती जा चुकी थीं। रही गोलकुंडा और बीजापुर की रियासतें सो उनके जीतने का बीड़ा औरङ्गजेब ने उठाया। पच्चीस बरस तक इसके सेनापतियों ने इन दो पठानी रियासतों के आधीन करने में कठिन परिश्रम किया परन्तु कुछ लाभ न हुआ। अन्त में जब औरङ्गजेब ने देखा कि यह काम करना ही है तो मुझे आप करना चाहिये। यह ठानकर पैंसठ बरस की आयु में दिल्ली से निकला और रणभूमि में ऐसा गया कि वहां से वह फिर दिल्ली लौटकर न आया। उसके राज के अन्तिम पच्चीस बरस दखिन के युद्ध में बीते। बरसों की लड़ाई और मारकाट के पीछे गोलकुंडा और बीजापुर मुग़ल राज्य में मिला लिये गये। उस समय मुग़ल राज्य इतना लम्बा चौड़ा था जैसा पहिले कभी नहीं हुआ था। इन दोनों रियासतों को मिलाकर एक नया सूबा बनाया गया। पहिले पहिल इस सूबे का हाकिम नवाब या सूबेदार कहलाता था पीछे दखिन का निज़ाम कहलाने लगा। हैदराबाद इसकी राजधानी थी।
८—इसी समय मरहठों के छोटे छोटे झुण्डों के आपुस में मिल जाने से एक नई जाति बन गई। बीजापुर के सुलतान ने इनके सर्दारों को दबा रक्खा था। अब औरङ्गजेब को मरहठों के राजा शिवाजी का सामना करना पड़ा। यह पुराने मरहठा सरदारों से बहुत शक्तिमान था। शिवाजी का वृतान्त आगे चलकर एक अलग अध्याय में लिखा जायगा; यहां इतना कह देना उचित है कि औरङ्गजेब शिवाजी को आधीन न कर सका।
८—पंजाब में भी सिक्खों की नई जाति का जन्म हुआ।