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४२—शिवाजी की बढ़ती।

मरहठे।

(१६२७ ई॰ से १६८० ई॰ तक)

१—मरहठे भारत के उस पहाड़ी हिस्से में रहते थे जिसे अब बम्बई हाता कहते हैं। यह लोग डील डौल में छोटे, बदन के पुष्ट, बीर और स्वभाव में सीधे साधे थे। इनका देश पहाड़ियों से पटा पड़ा था। उस समय सड़कें न थीं और पहाड़ियों पर घने बन थे। लगभग हर पहाड़ की चोटी पर एक गढ़ था; और हर गढ़ का एक सरदार था जो आस पास के गावों का हाकिम था। बहुत दिनों तक यह सरदार दखिन के मुसलमान सुलतानों के आधीन थे और उनको कर देते रहे। केवल इतना ही नहीं परन्तु उनके साथ होकर मुग़ल सम्राटों की सेना से युद्ध भी करते थे। शिवाजी ने उन सब को मिलाकर एक बली जाति बना ली।

२—शिवाजी शाहजहां की राजगद्दी की साल सन् १६२७ ई॰ में पैदा हुआ था। उसका बाप बीजापुर के दरबार में नौकर था। बाप नौकरी में था, शिवाजी पूने में पल रहा था। लिखना पढ़ना तो पण्डितों और ब्राह्मणों का काम समझा जाता था इस कारण शिवाजी को नहीं सिखाया गया; अलबत्ता शस्त्र विद्या की सब कलायें सिखाई गईं, जैसे घोड़े पर चढ़ना, तीर चलाना, कुश्ती लड़ना, बल्लम चलाना इत्यादि। उसको प्राचीन हिन्दू सूर बीरों के चरित याद थे। और उसकी अभिलाषा थी कि मैं भी उनकी भांति काम करके नाम और उन्नति प्राप्त करूं।

३—मरहठे सरदारों की यह रीति थी कि जब अवसर

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