गया था। उसने पहले पुरन्धर का गढ़ लिया और फिर एक एक करके और गढ़ जीत लिये; हथियार और सामान और रुपया इकट्ठा किया और उसका नाम दूर दूर तक फैल गया।
४—होते होते बीजापुर के सुलतान को भी उससे डर लगने लगा। उसने शिवाजी से युद्ध करने के लिये अपने सेनापति अफ़ज़ल खां को भेजा। शिवाजी ने कहला भेजा कि मुझ में खां साहब का सामना करने की शक्ति कहां है; अगर वह शस्त्र छोड़ कर अकेले मुझसे मिलैं तो मैं उनकी आधीनता स्वीकार करने को तैयार हूं। अफ़ज़ल खां के जी में कुछ संदेह न हुआ। वह सब सेना और अरदली के सवार पीछे छोड़ गया और पतली मलमल का बस्त्र पहन कर ख़ाली एक आदमी अपने साथ लेकर शिवाजी से मिलने चला। इधर यह जवान मरहठा सरदार दावघात का पक्का, ऊपरी बस्त्र के नीचे कवच पहने हुए था; मुट्ठी में बिछुवा और बांह में कटार छिपी हुई थी। अफ़ज़ल खां जो उससे मिलने को बढ़ा तो शिवाजी बाघ की भांति उस पर टूट पड़ा। पहले बिछुवा उसके पेट में घुसेड़ दिया फिर कटार से उसे मार डाला। शिवाजी के सैनिक जो पासही पेड़ों की आड़ में छिपे थे निकल कर मुसलमानों पर टूट पड़े। मुसलमान कुछ लड़ाई के लिये तैयार हो कर तो आये ही न थे हार कर भाग गये।
५—शिवाजी ने सारे देश को रौंद डाला और सारे दखिन का महाराजा बन गया। लगभग सब छोटे मोटे मरहठे सरदार और राजा उसके आधीन और सहायक हुए। यह मुसलमानों का बैरी था और उन्हें उसने जता दिया कि मैं गौ और ब्राह्मणों की रक्षा के लिये युद्ध करता हूं। यह वह समय था कि जब दखिन के मुसलमान बादशाह औरङ्गजेब की सेना से युद्ध कर रहे थे।