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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/२०९

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हाकिम से चौथ मांगते थे, जब तक चौथ न मिलती प्रजा को सताते और मारते थे और जो कुछ पाते थे लूट कर ले जाते थे।

३—औरङ्गजेब की मृत्यु के पीछे साहु मरहठों का राजा था। वह सम्भाजी का बेटा था जिसे औरङ्गजेब ने पकड़ कर मरवा दिया था। वह औरङ्गजेब के दरबार में पढ़ाया लिखाया गया था, बादशाह उसको साहु अर्थात विश्वासपात्र कहा करता था और शिवाजी को चोर। जब औरङ्गजेब की मृत्यु हुई तो उसको आज्ञा हो गई कि अपने देश लौट जाय और वहां के बादशाह का आधीन होकर मरहठों का राजा बने। इस कारण वह मरहठों का राजा हुआ और सितारा को उसने अपनी राजधानी बनाई। परन्तु साहु कुबुद्धि और मूर्ख था और बड़ा विषयी था; मेहनत से जी चुराता था। उसने कुल काम अपने ब्राह्मण मंत्री पर जो पेशवा कहलाता था छोड़ दिया था। पेशवा की पदवी मौरूसी हो गई और जिस भांति एक घराना राजा का था उसी भांति दूसरा घराना पेशवा का बन गया था। पेशवा देखने में तो राजा का आधीन था और उसी के नाम से सब राज काज करता था परन्तु वास्तव में धीरे धीरे मरहठों का हाकिम और राजा हो गया था। सब मरहठे उसे अपना सरदार जानते थे। सन्धि और विग्रह करना सब उसी के हाथ में था और वह सारे महाराष्ट्र मंडल का अधिकारी था।

४—पहिला पेशवा बालाजी विश्वनाथ था। औरङ्गजेब की मृत्यु के एक बरस पीछे अर्थात सन् १७०८ ई॰ में साहु ने उसको पेशवा बनाया और यह सन् १७२० ई॰ तक मंत्री बना रहा। इसने महम्मद शाह को दबा कर सारे दखिन में चौथ लेने की आज्ञा ले ली।

५—दूसरा पेशवा बाजीराव था। यह सन् १७२० ई॰ से