पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/२९

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आरण्यक भी वेदों के नाम से पुकारे जाते हैं, जैसे ऋग्वेदारण्यक यजुर्वेदारण्यक। इतना न भूलना चाहिये कि सामवेद और अथर्ववेद के साथ कोई आरण्यक नहीं है।

उपनिषद्—यह जान पड़ता है कि कुछ दिन बीते प्राचीन आर्य इन विधानों और नियमों के संग्रहों से उकता गये और उनके मन में ऐसे प्रश्न उठे "यह संसार जो हम देखते हैं क्या है? कैसे बना? हम कहां से आये? कहां जायेंगे?" ऐसे प्रश्नों के उत्तर जो आर्य ऋषियों को सूझे उपनिषदों में लिखे हैं। उपनिषद् ब्राह्मणों के पीछे या ईसा के जन्म से पहिले बन चुके थे। इन के रचनेवालों को यह सिद्ध हो चुका था कि वेद के देवताओं चन्द्र, सूर्य, वायु और आकाश का बनानेवाला एक और ही है जो इनसे बड़ा और शुद्ध है। इस को ब्रह्म कहते थे। यह मानते थे कि सारा जगत ब्रह्म ही से निकला और ब्रह्म में समा जायगा। वह कहते थे कि जैसे समुद्र का जल बादल बनकर आकाश में उड़ता है, धरती पर बरसता है, फिर नदियों में बहता हुआ समुद्र में मिलकर उसमें लीन हो जाता है ऐसेही सारा विश्व उसी एक परमब्रह्म परमात्मा से निकला और उसी में लीन हो जायगा।

हिन्दुओं के पुराने ग्रन्थ दो श्रेणियों में बंटे हैं। एक श्रुति जो सब से पुरानी है दूसरी स्मृति जिन में पीछे के ग्रन्थ हैं। श्रुति का अर्थ ईश्वर का वाक्य। वेद ब्राह्मण आरण्यक और उपनिषद् श्रुति हैं। स्मृति का अर्थ वह आचार व्यवहार के नियम जो स्मरण किये जाते थे।