पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[२५]

ही बन को चले जायं पर सीता ने कहा कि मैं यहां तुम्हारे बिना रहना नहीं चाहती, स्त्री का धर्म यह है कि जहां पति रहे वहीं उसकी सेवा में रहे चाहे घर में हो चाहे बनवास में हो। लक्ष्मण भी भाई का साथ छोड़ना नहीं चाहते थे और उनके साथ बन को चले।

७—राम सीता और लक्ष्मण यमुना से दक्षिण के बनों में चले गये और चलते चलते विन्ध्याचल के दक्षिण मध्य भारत के प्रसिद्ध दंडक बन में जा पहुंचे। इनके घर छोड़ने के थोड़े ही दिन पीछे राजा दशरथ परलोक सिधारे। कैकेयी ने बिचारा कि मेरा बेटा भरत राज करेगा। परन्तु भरत सत्यव्रत और सत्यप्रिय थे और राम से बड़ा सनेह रखते थे; पिता के देहान्त के पीछे राम की खोज में चले और उनसे बड़ी बिनती की कि आप घर लौट चलें और अवध में राज करें परन्तु राम ने उनकी बात न मानी और कहने लगे कि पिताने मुझे चौदह बरस के बनवास की आज्ञा दी है और मैंने उनकी आज्ञा मान ली है। राजकुमार अपने बचन से नहीं फिरा करते हैं। जब तक चौदह बरस न बीत जायं तब तक मैं अवध में पैर नहीं रख सकता। भरत को उलटे पैर लौट आना पड़ा। उन्हों ने राज पाट को अपना नहीं जाना और रामचन्द्र जी की खड़ाऊं गद्दी पर रख दी। इस का अभिप्राय यह था कि राज के असली मालिक रामचन्द्र जी हैं और उनके लौट आने तक उनकी जगह राज का काम काज और प्रजा का पालन करता रहूंगा।

८—कई बरस तक रामचन्द्र जी बनों में फिरते रहे। राम और लक्ष्मण प्रति दिन आखेट को जाया करते थे। एक दिन उनके पीछे एक बड़ा बली राजा रावण जो दक्षिणीय भारत के कुछ भाग पर राज करता था सीता जी की सुन्दरता का बखान सुनकर अकेले में