(१) मौर्य वंश।
१—चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में (ईसा से ३२१ बरस पहिले से लेकर २९७ बरस तक) उत्तरीय भारत में मगध एक बहुत बड़ा राज हो गया। कहते हैं कि गङ्गा जी की तरेटी से लेकर पंजाब तक सारा देश इसके आधीन था और प्राचीन आर्यों को समस्त रियासतें जो विदेह, पञ्चाल, कोशल के नामों से प्रसिद्ध थीं उसी राज में मिली थीं। चन्द्रगुप्त का कुल मौर्यवंश कहलाता है क्योंकि चन्द्रगुप्त की मां का नाम मुरा था। चन्द्रगुप्त ने पाटलीपुत्र में ३० बरस राज किया। हम पहिले लिख चुके हैं कि बाख्रर अर्थात् तुर्किस्तान के बादशाह सिल्यूकस ने (मलयकेतु) उसके साथ सन्धि करके उसको अपनी बेटी व्याह दी थी। एक यूनानी राजदूत मेगस्थनीज़ नामी आठ बरस तक इसके दर्बार में रहा। इसने मगध देश और हिन्दुओं की रीति नीति जो उसने देखी या सुनी थी बड़े बिस्तार से लिखी थी। वह लिखता है कि पाटलीपुत्र एक बहुत बड़ा नगर था, नौ मील लम्बा दो मील चौड़ा था। मगध के राजा की सेना में ६ लाख पैदल और ४० हज़ार सवार थे। राजा बड़ी सुगमता और विज्ञता से शासन करता था।
२—चन्द्रगुप्त का पोता अशोक २७२ बरस से २३२ बरस तक इस वंश का तीसरा राजा हुआ। यह चन्द्रगुप्त से भी अधिक प्रसिद्ध हुआ। इसको बहुधा अशोक महान कहते हैं, क्योंकि यह अपने समय का सब से बड़ा और प्रतापी राजा था। जवानी में यह बड़ा लड़नेवाला था। यह कहा करता था कि कलिङ्ग देश को जीत कर अपने राज्य में मिला लूंगा; तीन साल तक लड़ा और कलिङ्ग को जीत लिया। इस लड़ाई में हजारों लाखों मनुष्यों को