पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/७९

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१६—पुराण।

१—५२८ ई॰ में जब मगध के राजा बालादित्य और यशोधर्मन ने हूणों को हरा कर हिमालय के उत्तर भगा दिया था, तब से १००० ई॰ तक कोई बड़ा बिजयी राजा उत्तर के देशों से हिमालय के दर्रों में होकर नहीं आया। इसका एक कारण जैसा कि हम आगे लिखेंगे यह था कि तुर्किस्तान, ईरान और मध्य एशिया में एक नये धर्म का प्रचार हो रहा था। यह धर्म इसलाम था। अरब के रहनेवाले पहिले इन देशों के जीतने में लगे थे। जब अपनी ही जान के लाले पड़ रहे थे तो उन देशों के रहनेवाले भारत पर कसे चढ़ाई कर सकते थे?

२—इस समय हिन्दू बाहर की चढ़ाइयों और उपद्रवों से बचे हुए थे; चारों ओर राजपूत राजा राज करते थे। उन्हों ने बड़े बड़े राज अपने अधिकार में कर लिये; शिवालय और ठाकुरद्वारे बनवाये। देश धन सम्पत्ति से भरा पुरा था। बुद्धमत घट रहा था, हिन्दूधर्म की उन्नति हो रही थी। इससे यह न समझना चाहिये कि बुद्धमत नष्ट हो गया था और हिन्दूधर्म उसकी जगह स्थापित हो गया था। सच तो यह है कि सैकड़ों बरस से बुद्धमत घट रहा था और हिन्दू धर्म उभरता जाता था। एकही कुल में कुछ लोग हिन्दू और कुछ बौद्ध होते थे। बहुतेरे राजा दोनों धर्मों को बराबर मानते और दोनों की सहायता करते थे, फिर भी हम यह कहना उचित समझते हैं कि विक्रम के समय से अर्थात् ४०० ई॰ साल के लगभग बुद्धमत की घटती और हिन्दूधर्म की बढ़ती होने लगी, और होते होते १००० ई॰ तक बुद्धमत भारतवर्ष से निकल गया और उसके स्थान पर हिन्दू धर्म जम कर बैठ गया। इसके दो कारण हैं, पहिला यह कि इस समय