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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/८१

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त्रिमूर्ति का एक रूप माना और यह परमेश्वर का वह रूप है जो सृष्टि रचता है। पुराण के दोही प्रधान देवता विष्णु और शिव हैं। कालिदास के समय में सर्वत्र यही धर्म फैला था और यही देवता पूजे जाते थे।

४—पुराण बहुत से हैं। इनमें बहुतेरे स्थान, पहाड़ और नदियों के अधिष्ठाता देवताओं की पुरानी कथायें लिखी हैं। बड़े प्रामाणिक पुराण १८ हैं। यह विक्रम के समय से तीन सौ बरस पीछे तक अर्थात् सन् ७०० ई॰ तक बने थे। १८ पुराणों में से ६ में विष्णु की ६ में शिव की और ६ में ब्रह्मा की महिमा का बर्णन हैं और सब के सब एक न एक देवता के नाम से प्रसिद्ध हैं।

५—जैसे पुराणों में देवताओं की कथायें हैं वैसे ही उस समय के बने हुए उन ग्रन्थों में जिनको धर्मशास्त्र कहते हैं मनुष्यों के धर्म कर्म आचार व्यवहार लिखे हैं।

६—इस समय को पौराणिक काल कह सकते हैं क्योंकि इन्हीं दिनों पुराण रचे गये थे। अब भी वही काल चला आता है क्योंकि हिन्दू धर्म अब भी उसी ढङ्ग पर चल रहा है जैसा पुराणों में दिखाया गया है।


१७—पौराणिक समय के हिन्दू महात्मा।

१—पौराणिक समय में कई हिन्दू महात्मा हुये जिन्हों ने विष्णु और शिव की पूजा के प्रचार में बड़ा परिश्रम किया। इन लोगों के उद्योग का यह परिणाम हुआ कि बुद्धमत हिन्दुस्थान से नष्ट हो गया और उसकी जगह हिन्दू धर्म स्थापित हो गया।

२—इन महात्माओं में सब से पहले शङ्कराचार्य्य हुए। इनका जन्म दक्षिण में समुद्र के तीर मलयवार देश में हुआ था।