पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/८६

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से १२०० ई॰ तक जिधर देखो राजपूत राजाओं के राज्य दिखाई देते हैं। अब यह प्रश्न उठता है कि राजपूत कौन है?

३—राजपूत कहते हैं कि हम क्षत्रिय हैं और श्रीरामचन्द्र जी से और प्राचीन काल के और क्षत्रियकुलों से हमारी वंशावली मिलती है। बहुतेरे विद्वानों का यह मत है कि यह दावा उनका ठीक है। राजपूत शब्दका अर्थ राजाओं का बेटा है। प्राचीनकाल के क्षत्रिय सचमुच राजाओं के बेटे पोते थे। यह समझ में नहीं आता कि एकाएकी क्षत्रियों की बली जात समूल नष्ट हो गई हो। किसी किसी विद्वान का यह बिचार है कि राजपूत सिथियन था शकजाति के लोग हैं जो ईस्वी सन् की पांचवीं शताब्दी में झुण्ड के झुण्ड हिन्दुस्थान के पश्चिमोत्तर भाग में आकर बस गये, या यूनान देश के रहनेवाले हैं जो शकों के पहिले हिन्दुस्थान में आकर रह गये थे। हमको यह ठीक जान पड़ता है कि राजपूतों की विशेष जातियां जो दिल्ली कन्नौज और मध्यदेश में राज करती थीं निःसन्देह क्षत्रिय हैं। और जातियां जिनका नाम पहिले ही पहिल राजपूताना मालवा और गुजरात में सुनने में आता था जहां शक भीड़ के भीड़ धावा मारकर बस गये सिथियन वंशके हैं। राजपूतों की जाति बहुत ऊंची है; यह लोग बड़े बीर होते हैं और लड़ने मरने में बड़े मर्द हैं। वह बुद्ध के दयाधर्म को कब मानने लगे। बुद्ध का बचन है कि किसी जीव को न मारो न सताओ। राजपूतों ने भरसक ब्राह्मणों की सहायता की, बुद्ध मत को दबाया और पुराने हिन्दूमत को नये सिरे से फैलाया। जिस समय का हम हाल लिख रहे हैं उस समय में बहुत से राजपूत राजा हुए थे। इसी से हम ६०० ई॰ से १२०० ई॰ तक राजपूतों के राज्य का समय कह सकते हैं।

४—आर्यों के समय में गुजरात को श्रीकृष्ण की द्वारका कहते