पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/९३

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मन्दिर हैं जिनके धन सम्पत्ति का वारापार नहीं। महमूद यह कहता था कि जब मैं बड़ा होकर बादशाह हो जाऊंगा तो हिन्दू राजाओं से लडूंगा।

३—तीस बरस की उमर में महमूद सिंहासन पर बैठा। और जो कुछ यह पहिले कहा करता था वह सब इसने करके दिखा दिया। जब तक बरसात रही और दर्रे बरफ़ से भरे ढके थे यह चुप चाप बैठा रहा। इस के पीछे दल बादल से भारत पर चढ़ आया और लूट का माल लाद कर ले जाने को बहुत से ऊंट और घोड़े अपने साथ लाया। भारत में आते ही उसने देखा कि जयपाल जो उसके बाप से लड़ चुका था उसका सामना करने को तैयार है। पर महमूद और उसके पठान साथियों ने जयपाल को भगा दिया और बहुत सा धन लूटकर गज़नी ले गया। जयपाल ग्लानि के मारे अपना राज अपने बेटे अनङ्गपाल को सौंप कर आप जीते जी चिता पर बैठ गया और जलकर मर गया।

४—अनङ्गपाल ने देखा कि हिन्दुस्थान को हर घड़ी बाहरी दुष्टों का डर है। उसने उज्जैन, गवालियर, कन्नोज, दिल्ली और अजमेर के राजाओं के पास यह सन्देश भेजा कि महमूद अगले बरस फिर भारत पर धावा मारेगा; सब लोग मिलकर उसका सामना करें। राजाओं ने मान लिया और राजपूत दलबादल समेत पंजाब में पहुंच गये। पर ठंढे देश के पठान गरम देश के रहनेवाले राजपूतों से अधिक बली थे। लड़ाई में राजपूतों के पैर उखड़ गये। महमूद ने आगे बढ़कर नगरकोट का मन्दिर लूटा; चांदी सोना हीरा मोती के ढेर जो बरसों से धार्मिक हिन्दुओं के चढ़ाये थे सब लूट खसोट कर ग़ज़नी ले गया।

५—ग़ज़नी पहुंच कर महमूद ने बड़े भारी भोज का सामान