पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/११८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मार्योके महाकाव्य और अर्जुनको माता कुन्ती भी वहां उपस्थित थी। सबसे पहले भीम और दुर्योधनके बलकी परीक्षा - यारम्म हुई। दोनों बड़े मावेशमें भाकर लड़ने लगे। मनुष्य यया थे, हाथी थे या यला ये । उनके कोलाहलसे आकाश गूंजने लगा। दोनोने पराक्रमको पराकाष्ठा दिखलाई । करीव था कि दोनों कट जाते, पर थलात् उनको अलग. कर दिया गया। अब अर्जुन मैदानमें आया। इसने यह याण छोड़े कि चारों ओरसे 'साधु, साधु!, का शब्द गूजने लगा। पर्शकके मुखसे प्रशंसाके वाक्य मनायोस निकलने लगे। फुन्तीको छाती प्रसन्नतासे फूली.न समाती थी। वाणोंके अतिरिक्त अर्जुनने खड्ग और अन्य शस्त्रोंसे भी खूप करतब दिखाये लड़का फ्या, बलाका पुतला था। लक्ष्यभेदनमें ऐसा निपुण, ऐसा अभ्यस्त, ऐसा कुशल हस्त और ऐसा • फुर्तीला कि उसके समान संसारमें दूसरा उत्पन्न नहीं हुआ। सारे कौशल दिखलाकर वह गुरुजीकी मोर यढ़ा। मुककर प्रणाम किया और अपने स्थानपर आ बैठा। अजनका यश दुर्योधनसे न देखा गया । उसको छाती में द्रुपको ज्याला धध- कने लगी। यह जलकर'कोयना हो गया। यह और उसके भाई एक और जवानको मैदानमें लाये और पाण्डु पुत्रोंको उसके साथ लड़नेके लिये ललकारा । इस युवकका नाम फर्ण . राजपुत्र राजा लोगोंके सिवा दूसरों के साथ लड़ना लजा- जनक समझते थे। इसलिये दुर्योधन के पिता महाराजा धृत- राप्द्रने तत्काल कर्णको राजाको पदयो दे दी। परन्तु जय पाण्डुपुत्रोंने कर्णसे उसको घंशायली पूछी तब उसने स्पष्ट उत्तर देने में संकोच किया । इसपर पाण्डयोंने वंशावली मालूम किये बिना फर्णसे मुकायिला करनेसे इन्कार कर दिया ।