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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१२९

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शत्रु की सम्पत्तिको भारतवर्षका इतिहास आघांत करना, शस्त्रहीन रिपुका वध करना, अबलाओं और वृद्धोंपर आक्रमण करना अति कुत्सित फर्म समझा जाता था। लूट लेना भी उचित न था। इस सम्बन्ध भार्योका आचरण इतना उच्च था कि पांचों पाण्डवोंने युद्ध भारम्भ होनेके पूर्व भीष्म पितामहकी सेवामें उपस्थित होकर प्रणाम किया और उनसे युद्ध आरम्भ करनेकी आज्ञा प्राप्त की। इन पुस्तकोंसे यह भी ज्ञात होता है कि आर्यो'ने जभी किसी आर्य या अनार्य राजाको पराजित किया तो उसे अपना दास नहीं यनाया वरन् उसे फिर उसका राज्य प्रदान कर दिया । उस समय आर्य शब्द ऐसा सम्मानसूचक था कि अनार्य फहलाना परले दरजेकी अप्रतिष्ठाको वात थी। गीताके दूसरे अध्याय आरम्भमें जय महाराज कृष्ण अर्जुनकी उदासीनता और उत्साहहीनतापर उसे धिकारने लगे तब उस समय उन्होंने उसके भावको अनार्य ठहराफर उसे उपालम्म दिया । इन दोनों पुस्तकोंमें आर्यपुत्र एक बड़े सम्मानका शन्द गिना जाता था। किसी आर्यसे कोई फपट-छल और चंञ्चनाका कर्म होना, अथवा भीन्ता प्रकट होना, अथवा कोई नीति और धर्मके विरुद्ध कार्य होना प्रायः असम्भव समझा जाता था। इन पुस्तकोंमें यद्यपि हमें आर्यो की त्रुटियोंसे भी ( जिनमेंसे जुआ खेलना विशेष रूपसे उल्लेखनीय है) पर्याप्त शिक्षा मिलती है, परन्तु उनके सामान्य'माचार और धर्मके आदर्श याहुत ऊंचे मालूम होते हैं। यही कारण है कि हिन्दुओंने इन दोनों पुस्तकों के पढ़ने-पढ़ाने और सुनने-सुनानेको पुण्य कर्म ठहराया है। सताब्दियोंतक हिन्दू लोग इन्हीं अन्योंके विपुल भाएडारसे लाभे उठाते रहे हैं। क्या ही अच्छा हो जो वर्तमान पीढ़ियां भी. इनके अध्ययनको. उसी प्रकार आवश्यक समझें।