मौर्यवंश-सम्राट चन्द्रगुप्त १४७ निगरानी रखने और उनकी सेवा और सम्मान करे। इस परि- पदके कर्मचारी समस्त परदेसी यात्रियोंके सुख और सुमीतेके उत्तरदाता थे। वे उनके दवा-दारू और चिकित्साका भी प्रबन्ध करते हो। जो यात्री मर जाता था उसका बड़े सम्मानके साथ •अन्त्येष्टि कर्म किया जाता था और उसके मालको रक्षामें लेकर उसके उत्तराधिकारियोंके पास पहुंचा दिया जाता था। इससे सिद्ध होता है कि मौर्य वंशके राजाओंके शासनकालमें विदेशोंके साथ भारतीयों के घनिष्ठ सम्बन्ध थे और प्रायः लोग विदेशोंसे इस देशमें आते थे। तीसरी समिति के अधीन जन्म और मरणका विभाग था। चन्द्रगुप्त जन्मों और मृत्युओंके ठीक ठोक व्योरोंपर बहुत यल • देता था। उसके समयमें मनुष्यगणनाके रजिस्टर बहुत पूर्ण रहते थे । यूरोपियन इतिहास-लेखक इसका कारण यह बताते, है कि चन्द्रगुप्तके समयमें प्रति व्यक्तिको हिसायसे 'कर लिया जाता था । फदाचित् यह भी कारण दुरुस्त हो। परन्तु यूरो- पियन इतिहास-लेपकोंको तो इस सत्य घटनासे कि प्राचीन भारतका एक राजा जन्म और मरणके ठीक ठीक व्योरे तैयार कराता था, इसलिये आश्चर्य होता है कि उनकी सम्मतिमें यह विभाग आधुनिक सभ्यताका आविष्कार है। परन्तु प्राचीन मार्य-सभ्यता और भी कई घातोंमें आधुनिक सभ्यतासे अच्छी थी। इसलिये यह यात कोई आश्चर्यका हेतु नहीं होना . चाहिये। चौथी समितिके अधीन वाणिज्य था। यह समिति माप और वज़नके समी यन्त्रोपर अपनी छाप लगाती गौर सय सौदोंका निरीक्षण करती थी। सब, व्यापारी एक प्रकारका लायसेंस टेक्स देते थे।
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