पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. महाराजा बिन्दुसार और महाराजा अशोकका राजत्वकाल १७७ मौर उसके अन्दर मीनाकारी और पत्थरका काम ऐसा अद्भुत पना हुआ था कि कोई व्यक्ति यह नहीं कह सकता था कि इस • कामके करनेवाले मनुष्य थ । ये सब भवन गडा और सोन नदीके चोचके प्रदेशमे दवे पड़े हैं। अब उनका कोई नाम-निशान नहीं, परन्तु हालमें उनके कुछ कुछ पंडहर पृथ्वीमसे खोदे जा रहे हैं। बौद्ध धर्मके विहार इसी प्रकार अशोकने बहुतसे विशाल चौद्ध मन्दिर और विहार बनाये। इनमें और मन्दिर । भिक्षु और भिक्षुणियोंकी एक बहुत बड़ी संख्या रहती थी। ये सब भवन नष्ट हो चुके हैं या कमसे कम इस समय प्रस्तुत नहीं। फिर भी उसके भवनोंमेले साँचीके स्तूप तथा दूसरे स्तम्म और गुफाओंके भवन आदि जो कुछ भी मौजूद हैं वे अशोकके समयकी वास्तु-विद्या और उसके विचारोंकी .. उच्चताको प्रकट करनेके लिये पर्याप्त है। चूनेके जो स्तम्भ अशोक- के समयमें यने उनमें से कुछकी ऊंचाई पचास फुट और वजन लगभग पचास टन है। गयाके निकट माजीरिक सम्प्रदायके साधुओंके लिये जो गुफायें अशोकने बनाई ये भी अद्भुत हैं। परन्तु सबसे अधिक मनोरञ्जक और सार्थक उमके वे लेख है जो उसने पर्वतों, चट्टानों और स्तम्भोंपर पुदवाये और जिनमें उसके जीवन तथा राजत्वकालको घटनायोंका टन्टेम है। ये शिलालेख और स्तम्भलेप उत्तर और दक्षिणमें हिमालयसे आरम्भ होकर मोर पूर्व तथा पश्चिममें यट्नाटकी पाहीसे लेपर भरव सागरतक मिलते हैं। ये प्राकृत भाषा मिन मिन पनि लिस्ने हुए हैं। केवल उत्तर-पश्चिमी मोमाके दो पहाड़ी शिला- लेख खरोष्ठी लिपिमें हैं । अनुमान किया जाता है रियह बिर पाचवीं छठी शताब्दी ईसापूर्व फारम भारत में लाई गई यह लिपि फारसी अक्षरोंके सदृश दासे बायें लिया। f